Wednesday, April 27, 2011

प्लावन

तपती दुपहरिया गुजर चुकी ,
 गगन लोहित हो चला
उफनाते नयनों से ढलकर,
दुःख मेरा तिरोहित हो चला

एकाकी मन में स्मृतियाँ  
जग जग उठती है पल प्रतिपल
मेघों के तम को चीर रही 
मधुरतम स्मृति एक  उज्ज्वल

 गोरज, रजत भस्म सी दिखती, 
 बैठी तरुवर  के दल पर
 नीरव प्रदोष में क्लांत मन ,
सुनता विहगों के सप्तम स्वर

 चपला दिखलाती मेघ वर्ण
संग में गुरुतर गर्जन तर्जन
 घनीभूत अवसाद मिटाते,
नीलाम्बर में मुक्तावली बन

नभ गंगा की धवल फुहारें,
सिंचीत  करती है उर स्थल
स्पर्श मलय का आमोदित करता
प्लावित होता ह्रदय मरुस्थल











36 comments:

  1. एकाकी मन में स्मृतियाँ
    जग जग उठती है पल प्रतिपल
    मेघो के तम को चीर रही
    मधुरतम स्मृति एक उज्जवल

    स्मृतियाँ हमेशा उज्ज्वल रहें ... बहुत सुन्दर भाव प्रवण रचना ...

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  2. चपला दिखलाती मेघ वर्ण
    संग में गुरुतर गर्जन तर्जन
    घनीभूत अवसाद मिटाते,
    नीलाम्बर में मुक्तावली बन ...

    Beautiful thoughts ingrained . Loving the positive thinking in it. kinda inspiring.

    .

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  3. गज़ब का फ्लो है कविता में .सुन्दर शब्द और सकारात्मक भाव .
    कुल मिलकर कम्प्लीट पैकेज कविता का.

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  4. नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल

    sunder tana bana shabd aur soch -dono ka ....!!
    bahut sunder rachna .badhai.

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  5. तपती दुपहरिया गुजर चुकी ,
    गगन लोहित हो चला
    उफनाते नयनों से ढलकर,
    दुःख मेरा तिरोहित हो चला

    दुःख तो बीत गया
    अब सुख की बारी है
    मै भी आता हूँ

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  6. वाह ... बहुत खूब अनुपम प्रस्‍तुति ।

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  7. इस पद्य में आपकी मोहक शैली का ऐसा जबरदस्‍त आकर्षण है कि इसे पढ़ते वक्‍त रचनात्‍मक लेखन सा पाठ सुख मिला। आपकी काव्यकत्मकता निखार पर है। • इस कविता के द्वारा आपने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि आपकी रचनात्मकता मरुस्थल में भी सूखी नहीं है।

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  8. ये तो तत्सम कविता हो गयी। वी आई पी कविता! जय हो टाइप!
    लेकिन मनोज कुमार जी की टिप्पणी से असहमत कि आप मरुस्थल में बैठे हैं। आप तो कानपुर में हैं। यह तो देश के लगभग हृदयस्थल में है। :)

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  9. बहुत खूब. शुभकामनायें

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  10. संध्या का सुंदर श्रृंगार किया है इस शब्दांजलि ने।..वाह!

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  11. एकाकी मन में स्मृतियाँ
    जग जग उठती है पल प्रतिपल
    मेघो के तम को चीर रही
    मधुरतम स्मृति एक उज्जवल ..

    जीवन के अंधकार में ये स्मृतियाँ ही तो जीने का संबल बनती हैं..बहुत सुन्दर रचना ..

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  12. एकाकी मन में स्मृतियाँ
    जग जग उठती है पल प्रतिपल
    मेघो के तम को चीर रही
    मधुरतम स्मृति एक उज्जवल
    bahut hi utkrisht

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  13. तपती दुपहरिया गुजर चुकी ,
    गगन लोहित हो चला
    उफनाते नयनों से ढलकर,
    दुःख मेरा तिरोहित हो चला

    तपती दुपहरिया गुजर गई
    अब तरुवर छाँव दे चले
    नयनों से जो अश्रु ढले
    अब सीपी के मोती बन चले

    बहुत बहुत बधाई आपको ...
    is khoobsurat rachnaa की bhi aur is मलय के आमोदित स्पर्श की bhi .....

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  14. नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल
    सुंदर ...सम्मोहित करते भाव उकेरे हैं....उत्कृष्ट रचना

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  15. बढियां कविता है -चिड़ियों का कलरव पंचम स्वर होता है या सप्तम ?

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  16. "नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल "

    sundar bhav....!
    sundar abhivyakti..!!

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  17. चपला दिखलाती मेघ वर्ण
    संग में गुरुतर गर्जन तर्जन
    घनीभूत अवसाद मिटाते,
    नीलाम्बर में मुक्तावली बन

    कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं....
    हार्दिक बधाई...

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  18. आपकी इस रचना में तमाम व्याकरणिक त्रुटियाँ हैं. कृपया सुधार लें.

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  19. प्रतुल जी
    धन्यवाद आपका , अब अगर मुझे पता होता की व्याकरण त्रुटि युक्त है कविता तो मै इसे ऐसे पोस्ट ही क्यों करता . कृपया त्रुटियाँ लिख दें तो आगे से उनको दूर करने की कोशिश होगी .

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  20. तपती दुपहरिया गुजर चुकी ,
    गगन लोहित हो चला
    उफनाते नयनों से ढलकर, .......[शब्द 'उफनते' है जो यहाँ भी ठीक बैठता है]
    दुःख मेरा तिरोहित हो चला.

    एकाकी मन में स्मृतियाँ
    जग जग उठती है पल प्रतिपल
    मेघो के तम को चीर रही ____ [मेघों... में अनुस्वार रह गया है]
    मधुरतम स्मृति एक उज्जवल ____[जैसा की संगीता जी ने भी अपनी टिप्पणी में दिया है 'उज्ज्वल' शब्द में दो अर्ध 'ज्' ]

    गोरज, रजत भस्म सी दिखती,
    बैठी तरुवर के दल पर
    नीरव प्रदोष में क्लांत मन ,
    सुनता विहगों के सप्तम स्वर ____[विहंगों में 'ह' पर अनुस्वार लगने से रह गया है]

    चपला दिखलाती मेघ वर्ण
    संग में गुरुतर गर्जन तर्जन
    घनीभूत अवसाद मिटाते,
    नीलाम्बर में मुक्तावली बन

    नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल ____['सिंचित' शब्द कर दें तो ही ठीक रहेगा.]
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल ____['हृदय' में ऋ की मात्रा आती है। मरु मे उ की मात्रा लगेगी न कि ऊ की।]

    ....... कठिन और तत्सम शब्दों के प्रयोग का अभ्यास करना अच्छा है लेकिन उससे भी अच्छा है उनका सही-सही प्रयोग, उनकी सही वर्तनी से पहचान करना.

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  21. शुक्रिया प्रतुल जी

    तत्सम शब्दों के प्रयोग के प्रयास के साथ टंकड़ में त्रुटियाँ कम करने का प्रयास भी करूँगा . धन्यवाद आपका .

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  22. ashish ji
    aaj to aap ki rachna padh kar man aanand may ho gaya .sibah -sibah hi itni sondar post jahir hai man kitna bhi avichlit hoga aapki kavita ko padh kar vah kisi ke bhi dil ko sakun pahunchayega .
    aapke shabdo ka chayan hamesha se hi prabhavit karta raha hai .vaise bhi aap ek behatreen kavi hain ye baat to manani hi padegi.
    kaise itne sundar shabdo ka chayan kar lete hain aap?
    kya hindi se p.h.d. kiya hai aapne .
    sach bahut bahut hi achhi post
    dil se badhai
    poonam

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  23. मन की आस बढ़ाती कविता।

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  24. कमाल है!! इस शैली की रचनायें अब कम ही मिलती हैं.

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  25. ओह ...मुग्धकारी...

    भाव और शब्द सौन्दर्य ने मन बाँध लिया...

    अतिसुन्दर रचना....वाह..वाह..वाह...

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  26. गोरज, रजत भस्म सी दिखती,
    बैठी तरुवर के दल पर
    नीरव प्रदोष में क्लांत मन ,
    सुनता विहगों के सप्तम स्वर

    अद्भुत! .... बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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  27. नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल ...

    ग़ज़ब का ताना बना बुना है ... कविवर निराला की याद हो आई ....

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  28. "नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल "
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा
    बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...
    कृपया प्रतुल वशिष्ठ जी की बात माने कविता और भी सुन्दर बन जाएगी ....

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  29. बहुत बढ़िया प्रस्तुति|धन्यवाद|

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  30. अच्छी रचना है।
    लिखते रहिए।
    शुभकामनाएं।

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  31. भाई आशीष जी बहुत ही सुंदर शब्द सामर्थ्य से सुसज्जित कविता बधाई और शुभकामनाएं |

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  32. बहुत सुन्दर .शुभकामनाएं.

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  33. नभ गंगा की धवल फुहारें,
    सींचित करती है उर स्थल
    स्पर्श मलय का आमोदित करता
    प्लवित होता ह्रदय मरूस्थल

    वाह आशीष जी,खूब लिखा है.वाह.

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  34. aap ki kavita prashad ki kavita se bhi achchhi lagi

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