लो हो गयी आत्म सम्मान यज्ञ की पूर्णाहुति
वैभव विलासिनी दिल्ली में , जगी जन अनुभूति
कर्मठता की प्रतिमूर्ति रवि , कब ढल सकता है
जलद पटल को भेद , व्योम में संबल भरता है
भरा तुणीर शरों से, जन की आकाक्षाओ वाली
कर में धन्वा ,धर्म अहिंसा की प्रत्यांचाओ वाली
कोटि जन मन से समर्थित ,शिष्ट सौम्य आचार
मन्त्र-मुग्ध-सा मौन चतुर्दिक् जन का पारावार,
हवन अग्नि बुझ चुकी, और आशा के दीप जगमग
अभी कहाँ विश्राम बदा है , मीलों है चलना डगमग
स्वजनों के हित में , इस युग तप का टंकार किया
हिमालय शैल सा रहा अटल. कंचित ना अहंकार पिया
भ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
स्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
वैभव विलासिनी दिल्ली में , जगी जन अनुभूति
कर्मठता की प्रतिमूर्ति रवि , कब ढल सकता है
जलद पटल को भेद , व्योम में संबल भरता है
भरा तुणीर शरों से, जन की आकाक्षाओ वाली
कर में धन्वा ,धर्म अहिंसा की प्रत्यांचाओ वाली
कोटि जन मन से समर्थित ,शिष्ट सौम्य आचार
मन्त्र-मुग्ध-सा मौन चतुर्दिक् जन का पारावार,
हवन अग्नि बुझ चुकी, और आशा के दीप जगमग
अभी कहाँ विश्राम बदा है , मीलों है चलना डगमग
स्वजनों के हित में , इस युग तप का टंकार किया
हिमालय शैल सा रहा अटल. कंचित ना अहंकार पिया
भ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
स्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
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ReplyDeleteजगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
Wonderful creation ! very powerful and inspiring .
.
अन्ना जी की शुरुआत जबरदस्त रही पर पूर्णाहुति करने में जल्दबाजी हुयी. मुझे ऐसा लगता है कि कुछ मानवीय दुर्बलताए उभारने लगी थी थोड़ी देर बाद सरकार बिलकुल टूटने वाली थी पता नही क्या हुआ जो दो चेयरमैन वाली बात स्वीकार कर ली गयी. मुझे यह पटाक्षेप कुछ जचा नही. खैर शुरुआत मिल गयी है तो इसे आगे बढाया जाय.
ReplyDelete--
nirala ji kii yaad dila gayi aap kii kavita es kavita kii pukar se bhi agar bharat vanshi nahi jage to ab kab...? shayad shuruaat huyi hai
ReplyDeleteसिंह जगे, कोलाहल न हो,
ReplyDeleteशुद्धि हेतु गंगाजल न हो?
यह वह काल ही है जब कविमन अन्ना पर न्योछावर होंगें -बहुत अच्छी कविता!
ReplyDeleteबस मैनाक की जगहं हिमालय कर दें -मैनाक उड़ने वाले पहाड़ हैं एक जगह स्थिर नहीं रहते !
बहुत ही ओजस्वी गीत रचना दिनकर जी याद अ गयी बधाई भाई आशीष जी |
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत शब्दों से रची उत्तम रचना ...दिनकर की "कुरुक्षेत्र" काव्यरचना याद आ गयी ...
ReplyDeleteआदरणीय अरविन्द जी
ReplyDeleteमैंने तो केवल दृढ़ता और अटलता को दर्शाने के लिए मैनाक पर्वत का नाम लिखा था जो शायद हर पर्वत का गुण होता है . आप ने ये बताकर की मैनाक पर्वत हमारे पुराणों में उड़ने वाले पहाड़ का नाम है हमारे ज्ञान में वृद्धि की . आभार आपका .
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
ReplyDeleteकृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
आपकी कविताओं में दिनकर की छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है.जो इस हिंदी ब्लॉग जगत में बहुत कम देखने को मिलता है.
बहुत सुन्दर रचना.
काव्य के सभी रसों पर अच्छा अधिकार है. कभी प्रसाद कभी दिनकर और कभी काका हाथरसी.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता रची है. बधाई.
अभी कहाँ विश्राम बदा है , मीलों है चलना डगमग bilkul chalna hai nirantar , aur doosron ki pratiksha bhi nahi karni hai , khud ke kadam nirbhay ho badhane hain
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
ReplyDeleteस्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
आशीष जी .....
अभी जयशंकर , कभी दिनकर , कभी निराला ....):
क्या बात है .....
भारती , जय, विजय करे
कनक-शस्य-कमल धरे
हवन अग्नि बुझ चुकी, और आशा के दीप जगमग
ReplyDeleteअभी कहाँ विश्राम बदा है , मीलों है चलना डगमग
बहुत सुंदर...... ओजपूर्ण और सकारात्मक पंक्तियाँ....
Very impressive lines :)
ReplyDeleteहवन अग्नि बुझ चुकी, और आशा के दीप जगमग
ReplyDeleteअभी कहाँ विश्राम बदा है , मीलों है चलना डगमग
स्वजनों के हित में , इस युग तप का टंकार किया
हिमालय शैल सा रहा अटल. कंचित ना अहंकार पिया.
बहुत गहन और सुन्दर व्याख्या....
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
जयकृष्ण राय तुषार जी की ही तरह मुझे भी दिनकर जी की याद आ गयी.
बधाई ।
बहुत सुंदर व ओजपूर्ण कविता।
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
ReplyDeleteस्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
हम चार दीवारी के अन्दर भले ही हिन्दू रहे या मुसलमान , चार दीवारी के बाहर हम भारतीय हैं और केवल भारतीय हैं.. आज का राष्ट्रधर्म और व्यक्ति धर्म दोनों ही यही है. यहाँ केवल सृजन है...., निर्माण है..., नवीन भारत का पुनर्जागरण है. यह किसी राजनीतिक की भाषा या प्रचार प्रसार नहीं, अपने अंतर्मन की आवाज है जो सिर्फ मित्रों और दोस्तों को हो सुनायी जा सकती है, दूसरों को नहीं. आज यही कार्य एक दायित्व मानकर राष्ट्रीयहित में एक आह्वान और एक निवेदन दोनों है. हमें अवांछनीय कार्यो को दृढ़ता से रोकना होगा. शार्टकट के सारे रास्ते और सुविधाशुल्क के प्रचलन पर दृढ़ता से रोक लगाना होगा. कम से कम हम स्वयं तो यह कार्य न करें. न अपनों को करने दे. संख्या हमारी अवश्य बढ़ेगी. आखिर हम भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार को कब तक सहें........क्यों सहें .......?
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
ReplyDeleteकृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है
बहुत ही प्रभावशाली कविता है।
अन्ना जी के साथ पूरा देश एकजुट है।
भ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
ReplyDeleteस्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ...
बहुत अच्छी ओजपूर्ण कविता.... बधाई.
सशक्त अन्ना जी के लिए सशक्त ओजपूर्ण कविता।
ReplyDeleteआशीष जी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना पसंद आई |
ReplyDeleteआपका लेखन भी बहुत प्रभावशाली है |मैंने अभी ही आपका ब्लॉग फोल्लो किया है |
बधाई सशक्त लेखन के लिए .
बेहतरीन!!
ReplyDeleteविदीर्ण होते हृदय को एक आशा की ज्योति मिल ही गयी ...
ReplyDeleteअन्ना कविताओं के सुपात्र है ...
बेहतरीन !
बेहतरीन...
ReplyDeletebahut ozpoorn abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
ReplyDeleteस्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
bahut hi sahi aur badhiyaa .
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
ReplyDeleteकृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
बहुत खूब कहा है ...।
aashish ji
ReplyDeletebahut bahut badhai itni badhiya prastuti ke liye sachmuch ab yahi karne ki jarurat sabko hai.
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
behad hi jagrit karne wali shandaar post
bahut abhut badhai
poonam
अदभुत ,सम -सामयिक विषय वस्तुओं से जुडी कविताओं के अकाल में जोरदार बारिश
ReplyDeleteशानदार. बाकी जो कहना चाहिये था, सबने कह दिया :)
ReplyDeleteप्रभावशाली शब्दशैली की ओजपूर्ण कविता...
ReplyDeleteस्वजनों के हित में , इस युग तप का टंकार किया
ReplyDeleteहिमालय शैल सा रहा अटल. कंचित ना अहंकार पिया.
सुन्दर रचना...!
बहुत अच्छी कविता है बधाई.
ReplyDeleteआभासी क्रांति का स्पर्श-सुख.
ReplyDeleteप्रभावशाली कविता ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteसशक्त रचना ...प्रभावशाली भाषा !
ReplyDeleteकित्ती प्यारी सी कविता..बधाई.
ReplyDelete________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
बेहतरीन..प्रभावशाली ..
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