स्नेही स्वजनों
अतिशय कार्य व्यस्तता भविष्य में दिख रही है , और नितांत निजी कारणों से थोड़े दिनों का अपने शहर से अप्रवास के कारण ब्लॉग लिखने के कार्य से अवकाश लेना पड रहा है . लेकिन हम पढने और टिपियाते रहने का लोभ शायद ही संवरण कर पाएंगे . काशी प्रवास के इस अवकाश के दौरान अगर कोई ब्लोगर भाई मिल गया तो शिखर बैठक भी हो सकती है . क्या पता कोई वहा डूबा हुआ मनन कर रहा हो अपनी कालजयी रचना के सन्दर्भ में . नीचे लिखी पंक्तियाँ हल्के अंदाज में लिखी गयी है , और अनुरोध है कि इनको फुल्के में लिया जाए .
अतिशय कार्य व्यस्तता भविष्य में दिख रही है , और नितांत निजी कारणों से थोड़े दिनों का अपने शहर से अप्रवास के कारण ब्लॉग लिखने के कार्य से अवकाश लेना पड रहा है . लेकिन हम पढने और टिपियाते रहने का लोभ शायद ही संवरण कर पाएंगे . काशी प्रवास के इस अवकाश के दौरान अगर कोई ब्लोगर भाई मिल गया तो शिखर बैठक भी हो सकती है . क्या पता कोई वहा डूबा हुआ मनन कर रहा हो अपनी कालजयी रचना के सन्दर्भ में . नीचे लिखी पंक्तियाँ हल्के अंदाज में लिखी गयी है , और अनुरोध है कि इनको फुल्के में लिया जाए .
"उपमा कालिदासस्य "ऐसा पढ़ा था
जूठी कर डाली उपमाये कविगण ने
जनकसुता के सौन्दर्य वर्णन को
नहीं बची उपमा , तुलसी ने कहा था. \
कभी हम प्राची की लालिमा से
नायिका के कपोल याद करते है
कभी ट्यूलिप की अधखुली पंखुड़ी में
अपने प्रीतम को अपलक निहारते है
कभी महबूब ,हमे चाँद नजर आता है
चाँद से प्यार, हद से बढ़ जाए तो
आसमान से उतर घर की देहरी में
बिचारा वो खूंटी पर भी टंग जाता है
बिम्ब में दिखता है कविता का घनत्व
बेरुखी में भी हम देख लेते है अपनत्व
बैठ कर हम छिछली नदी तट पर
ढूँढ लेते है जलधि गर्भ से अनमोल तत्व
कवि की कल्पना कई बार कमाल करती है
चाँद गर आये धरनी के पास घूमकर
कहते है चाँद का मुँह सूजा है
फिर भी चांदनी मस्त निर्झर सी झरती है
चाँद तो बदरी में छुप जाता है
कवि जी उपमाये गढ़ते रहते है
अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों में
जनता को उलझाये रहते है .
जूठी कर डाली उपमाये कविगण ने
जनकसुता के सौन्दर्य वर्णन को
नहीं बची उपमा , तुलसी ने कहा था. \
कभी हम प्राची की लालिमा से
नायिका के कपोल याद करते है
कभी ट्यूलिप की अधखुली पंखुड़ी में
अपने प्रीतम को अपलक निहारते है
कभी महबूब ,हमे चाँद नजर आता है
चाँद से प्यार, हद से बढ़ जाए तो
आसमान से उतर घर की देहरी में
बिचारा वो खूंटी पर भी टंग जाता है
बिम्ब में दिखता है कविता का घनत्व
बेरुखी में भी हम देख लेते है अपनत्व
बैठ कर हम छिछली नदी तट पर
ढूँढ लेते है जलधि गर्भ से अनमोल तत्व
कवि की कल्पना कई बार कमाल करती है
चाँद गर आये धरनी के पास घूमकर
कहते है चाँद का मुँह सूजा है
फिर भी चांदनी मस्त निर्झर सी झरती है
चाँद तो बदरी में छुप जाता है
कवि जी उपमाये गढ़ते रहते है
अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों में
जनता को उलझाये रहते है .
बहुत सुन्दर कविता लिखी है । अच्छी लगी । शीघ्र अवकाश से वापस आयें । आपका अवकाश काल सुखमय हो ।
ReplyDeleteनितांत निजी कारणों से व्यस्त होने वाले हैं भविष्य में ... अच्छा है ...खाली दिमाग ही शैतान का घर होता है :):)
ReplyDeleteकवियों / कवयत्रिओं की कल्पना पर अच्छा खासा कटाक्ष कर दिया है ..पर हम नहीं सुधरेंगे ... हमारे पास तो कल्पनाएँ ही हैं ...:):)
अच्छी प्रस्तुति
अच्छा खड़ा किया आपने भी बखेड़ा है
ReplyDeleteबच गए,
वरना कहते ‘चांद का मुंह टेढ़ा है।’
कालीदास से बात शुरु कर आप तन गए हैं
कालजयी इस रचना से महाकवि बन गए हैं।
रचना आपकी अथाह सागर है
और मेरा छुद्र मन गागर है
इसके सारे रत्न से भर लाया हूं
कह नहीं सकता आज क्या खोया क्या पाया हूं?
अवकाश से अच्छी रचनाओं से हो जाऊंगा वंचित
टिप्पणियां मिलती रहेंगी, हुआ मन पढ़कर हर्षित!
अच्छी कविता लिखी है आपने।
ReplyDeleteपढ़ते हुए होठों पर मुस्कान तैर गई।
एक बार पुनः चिर परिचित अंदाज़ ए बयां
ReplyDeleteअच्छा हुआ ये नही लिखा कि राम राम या कुछ दिनों के लिए ब्लागिंग छोड़ रहा हूँ
लिकिन ई बताव कि हमसे कहे के सुतिज़रलैंड जाय रहे मूल हिय तौ काशी प्रवास
कौनो बात नहीं ई तो दुनिया के चलन है घर में आदमी लेता रहता है मूल मोबाईल पे कही कि अबे हम मीटिंग में है
--
सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |काशी में एक ब्लागर दैनिक जागरण में हैं श्यामल जी 9450955978 b h u me arvind mishra ji depott.science
ReplyDeleteक्या बात है ..आपने एक साथ कितनी बातों को कितनी खूबसूरती के साथ कह डाली..बहुत अच्छा लगा ..आनंद आया शुभकामना
ReplyDeleteबहुत धांसू जनता कविता लिख डाली। बहुत खूब टाइप।
ReplyDeleteवैसे चांद के खिलाफ़ तमाम केस बनते हैं। यहां भी देखिये नाम आया है उसका:
चांद की आवारगी है बढ़ रही प्रतिदिन
किसी दिन पकड़ा गया तो क्या होगा?
हर गोरी के मुखड़े पे तम्बू तान देता है
कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?
लहरों को उठाता है, वापस पटकता है
सागर कहीं तऊआ गया तो क्या होगा?
उधार की रोशनी पर चमकता, ऐठता है,
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
अभी तक गोरे मुखड़ों पे विराजते रहे बबुआ
ओबामा सावले चेहरे पे बईठा दिहिस तो क्या होगा?
तुमने चाँद की बखिया उधेड़ कर रख दी, और उसको क्या से क्या बना दिया? रही सही कसर अनूप जी ने पूरी कर दी. वैसे यह भी सही है -- चाँद दूर से ही सुहाना लगता है नहीं तो पास में जाकर लोग कहते हैं उसका मुखड़ा चकिया सा टंका दिखता है.
ReplyDeletebhut hi gahre bhaavo ko apne shabdo me dhala hai... bhut khub...
ReplyDeleteबिम्बो, प्रतिबिम्बों में लहराता साहित्य।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
कवि की कल्पना कई बार कमाल करती है
ReplyDeleteचाँद गर आये धरनी के पास घूमकर
कहते है चाँद का मुँह सूजा है
फिर भी चांदनी मस्त निर्झर सी झरती है
यही तो कवि की कल्पना और हाथ का जादू है , सूखे में भी नदी बहती है
बिम्ब में दिखता है कविता का घनत्व
ReplyDeleteबेरुखी में भी हम देख लेते है अपनत्व
बैठ कर हम छिछली नदी तट पर
ढूँढ लेते है जलधि गर्भ से अनमोल तत्व
बहुत सुंदर काव्य रचना .....
हमारा चंदा मामा, हमारी कल्पना चाहें खूँटी पर लटकाएं या घर में बैठाएं किसी को क्या परेशानी है जी :).
ReplyDeleteअच्छी क्लास ले डाली है कवि और उसकी काल्पनिक उपमाओं की.
आप काशी जा रहे हैं तो एक चाँद वहाँ से ले आइये :)
शुभकामनायें ......
हा हा सही है शिखा जी , भाई चाँद तो अपना ही है तभी तो हम उसको जैसे चाहे घूमा फिरा लेते है . बाकी काशी में तो चाँद धारी रहते है माने चन्द्र धारण किये शिव .
ReplyDeleteबिम्ब में दिखता है कविता का घनत्व
ReplyDeleteबेरुखी में भी हम देख लेते है अपनत्व
बैठ कर हम छिछली नदी तट पर
ढूँढ लेते है जलधि गर्भ से अनमोल तत्व
maja aa gaya padhkar aur anup ji ne to dho hi di pahle hi daag liye phirta hai us par roshni par bhi swaal khada kar diya
उधार की रोशनी पर चमकता, ऐठता है,
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
kal tak khoobsurati ke charche rahe ab khatre me pad raha hai bechara
dono hi laazwaab
बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकभी महबूब ,हमे चाँद नजर आता है
ReplyDeleteचाँद से प्यार, हद से बढ़ जाए तो
आसमान से उतर घर की देहरी में
बिचारा वो खूंटी पर भी टंग जाता है ...
महबूब और खूँटि पर ... नही नही ... जब वो चारदीवारी में आता है तो दूसरे को खूँटि में टाँग देता है ...
बहुत अच्छी रचना है ...
aap ki kavita ka chand mera mama hai esliye main kuchh nahi kahugi
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ...बेहद सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह...क्या बात है...
ReplyDeleteकाशी प्रवाश!
ReplyDeleteकहां ठहरे हैं कुछ बतायेंगे ? मेल-वेल करेंगे ? ब्लॉगर को कैसे ढूढेंगे!
चांद-वांद का ही चक्कर है क्या ? आपके फाइल में तो मेल का पता है ही नहीं।
भावोद्गार को उपमाये तो चिर काल तक गढ़ी जाती रहेंगी...
ReplyDeleteइनके बिना काव्य संभव कहाँ है...
ReplyDeleteचाँद तो बदरी में छुप जाता है
ReplyDeleteकवि जी उपमाये गढ़ते रहते है
अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों में
जनता को उलझाये रहते है .
कवियों पर आक्षेप अच्छी बात नहीं है | सुंदर अभिव्यक्ति बधाई तो ले ही लीजिये ....
aashash ji
ReplyDeletebahut hi sundar aur prvaah mayi post .ab main yah to nahi likhungi ki aapne chand ki bakhiya ukhed di hai .par upmaao v prativimbo ka aapne behad hi shandaar tareeke se upyog kiya hai .bahut hi achhi nahi bahut bahut hi achhi lagi aapki rachna .jald hi wapas aaiyega .
intjaar rahega---
dhanyvaad sahit
poonam
बहुत सुंदर कविता,
ReplyDelete- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चाँद तो बदरी में छुप जाता है
ReplyDeleteकवि जी उपमाये गढ़ते रहते है
अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों में
जनता को उलझाये रहते है .
क्या बात है.खूब कहा आपने.
सही है.. गलत नहीं कहा है.. जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि!!
ReplyDeleteकवि की उड़ान कहीं की कहीं हो सकती है.. कोई बंदिश नहीं...
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
आपकी वापसी की प्रतीक्षा है...
ReplyDeleteउपमाओं में कवि स्वयम ही उलझा रहता है तब तो अद्भुत उपमाओं का अधिकारी भी होता है .
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