Tuesday, May 1, 2012

बनिहारिन





iवो खेत में मसूर काटे
पैर में बिवाई फाटे
हंसिया ताबड़ तोड़ चलावे 
हथेली में पड़ गई गांठे 

करईल की खांटी  मिटटी 
जरत है अंगार नियर 
कपार से कुचैला सरकत 
मुँह झहाँ के हो गईल पीयर 

जांगर की प्रतिष्ठा में , जाने 
केतना  लेख लिखायल
सुरसती का स्वेद बोले 
घायल की गति जाने घायल

गुदड़ी में लिपटल  नौनिहाल
राइ क ठूंठ पर वितान तले 
घाम से खेले छुपन छुपाई
कीचराइल  आँख  में सपना  पले

श्रम  दिवस क आज खूब शोर बा
एकर खाली नाम सुनल है
सुरसती  पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
बनिहारिन त  नाम पडल है






कपार--सिर, नियर --जैसे , झहाँ --झुलस कर , जांगर --श्रम , राइ--सरसों की एक प्रजाति , घाम --धूप,  बनिहारिन -महिला श्रमिक





30 comments:

  1. गुदड़ी में लिपटल नौनिहाल
    राइ क ठूंठ पर वितान तले
    घाम से खेले छुपन छुपाई
    कीचराइल आँख में सपना पले

    श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है
    सही है. एक ग्रामीण महिला श्रमिक को क्या फ़र्क पड़ता है मजदूर दिवस से,महिला दिवस से, या किसी भी दिवस से? क्षेत्रीय भाषा ने भाव और मजबूत कर दिये हैं आशीष जी. बधाई.

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  2. श्रमिक दिवस पर अच्छी और सार्थक रचना......

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  3. प्रकृति, मेघ , मोर , बारिश से निकल कर आपने सामाजिक सरोकार की तरफ रुख किया. आज श्रमिक दिवस पर आंचलिक भाषा के सौंदर्य से भरपूर यह कविता प्रभावशाली है.

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  4. गुदड़ी में लिपटल नौनिहाल
    राइ क ठूंठ पर वितान तले
    घाम से खेले छुपन छुपाई
    कीचराइल आँख में सपना पले

    बहुत प्रबल भाव में भीगी प्रभावित करती पुरजोर रचना ....
    शब्द-शब्द में भाव-भाव ....
    बहुत सुंदर लिखा है ....!!

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  5. सार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई

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  6. भाई आशीष ..
    एक तो आज के दिन को समर्पित इससे बेहतर और कुछ हो भी क्या सकता है?
    दूजे आपकी इस शैली ने तो मन मोह लिया। गुजारिश है कि इस शैली को बरकरार रखें।
    इस कविता में जो तस्वीर आपने खींची है वह सीधे दिल को लगता है। जिसने बेहद नज़दीक से इस जीवन को देखा है वही ऐसा लिख सकता है।
    एक बेहद अच्छी रचना के लिए बधाई।

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  7. और मनोज जी के इस सुर में एक सुर हमरा भी मिलाय लो.:)

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  8. ye aapne achchha kiya jo es baar meanings likh diye.
    kuch shabd hamko bhi samaz nahiaay the ...
    and saily to as usual hamesa k tarah , uske baare mai ham kya hai.. too good

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  9. मैं अभी अपने गाँव की बनिहारिनों को आपकी रचना में करीब से देख रही हूँ..

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  10. हकीकत की बानगी हैं आपकी रची पंक्तियाँ.....

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  11. आंचलिक भाषा में लिखी एक सशक्त रचना ... हकीकत से रु ब रु करती हुई ...

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  12. श्रमनिरता का संवेदनात्मक वर्णन..बहुत प्रभावी..

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  13. सार्थक,सशक्त, प्रभावशाली रचना!

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  14. आशीष जी, आपकी इस रचना में न सिर्फ भोजपुरी की मिठास है, बल्कि वो ज़मीनी खुशबू है जिसका अनुभव कर पाना वाकई बहुत कम लोगों के बस की बात है.
    इस रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
    सादर
    मधुरेश

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  15. यह दिवस तो सिर्फ बड़ों की बातें हैं ...जश्न के बहाने हैं.....मजदूरों ने सभी दिन धूप बरसात में काटे हैं ....बहुत दुखद ....

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  16. बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  17. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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  18. ज़ोरदार रचना - महिला मज़दूर को तो दुहरी मार झेलनी पड़ती है - घर जाकर भी चूल्हा-चौका और बच्चों का सँभाल शायद रात मे सोना भी मुश्किल हो जाता हो - फिर भी रहेगी बेचारी ही !

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  19. श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है

    श्रमिक दिवस पर बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  20. महिला और मजदूर इसकी दोहरी व्यथा इस भोजपुरी कविता में दर्द बन कर बह रही है । इनका जीवन तो वैसे ही चलता है चाहे महिला दिवस हो या मजदूर दिवस ।

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  21. क्या कहूँ जो कुछ मुझे कहना था वह सब तो यहाँ सभी ने कह दिया :-) फिलहाल मनोज जी कि बात से पूर्णतः सहमत हूँ। शुभकामनायें

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  22. श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है

    यह शब्द (बनिहारिन) गांव की ओर लेकर चला गया । आपने बहुत ही खूबसूरत अंदाज में इसे पेश किया है । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  23. श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है ..

    सच कहा है .. मजदूरन (इसमें घर की नारी भी शामिल है) ... दिन रात चक्की कीतरह पिसती है और शोर होता है बस दिवस का ...
    इस वाता कों खूब शब्दों में उतारा है ...

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  24. श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है

    श्रम दिवस पर एक सार्थक कविता।
    बहुत बढि़या।

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  25. महाप्राण निराला की रचना याद आ गयी वह तोडती पत्थर इलाहाबाद के पथ पर.

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  26. कमाल की कविता है! जो बात इस कविता में है वह इसके बाद की पोस्ट में नहीं। एकाध अउर ट्राई कीजिए न! ई भाषा का कौनो जोड़ नहीं है।..बहुत बधाई।

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  27. श्रम दिवस क आज खूब शोर बा
    एकर खाली नाम सुनल है
    सुरसती पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
    बनिहारिन त नाम पडल है .............बाह खुबे नीक प्रस्तुति ...मजदूर दिवस प भोजपुरी में इतना सुनर गीत खातिर खचोलिया भर बधाई

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  28. bohat hi sarthak aur bhavpoorn rachna... this is a perfect ode to hard life of a ' mazdoor'

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