माँ को याद करने का कोई एक दिन, ये हमारी संकृति का अंग
नहीं है . हम तो अपनी माँ को प्रतिदिन, प्रतिक्षण याद करते है . पाश्चात्य
जगत में भावनाओ के सामयिक क्षरण , अभिकेंद्रित होते परिवार में शायद माँ
शब्द वर्ष में एक बार याद करने लायक हो गया है .. माँ , वात्सल्य , त्याग
,और स्नेह का समुद्र है . मातृ देवो भव हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है .इश्वर को भी सर्वप्रथम त्वमेव माता
ही कहा गया है . ये सच है की इस कालखंड में तमाम दुश्वारियों के बाद भी
माँ का ममत्व अपनी संतान को पल्लवित होते हुए ही देखना चाहती है . ये सच है
पूत कपूत सुने ,पर नहीं सुनी कुमाता
.माता के ओ आंसू कण
अमित वेदनाओ की माला
ह्रदय-चेतना -हारी हाला
अपमानो की विषम -ज्वाला
करती है जिनमे नर्तन
जो देखा माता के आंसू कण
सोते प्राणों के आलय में
विस्मृत गौरव -गान -निलय में
प्रतिपल होते साहस-लय में
चुभ जाएँ तीखे शर बन
जो देखा माता के आंसू कण
मुंदी हुई पलके खुल जाएँ
शौर्य-शक्ति हम में घुल जाएँ
मन में त्याग भाव तुल जाएँ
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
अपनी माता के आंसू कण
.माता के ओ आंसू कण
अमित वेदनाओ की माला
ह्रदय-चेतना -हारी हाला
अपमानो की विषम -ज्वाला
करती है जिनमे नर्तन
जो देखा माता के आंसू कण
सोते प्राणों के आलय में
विस्मृत गौरव -गान -निलय में
प्रतिपल होते साहस-लय में
चुभ जाएँ तीखे शर बन
जो देखा माता के आंसू कण
मुंदी हुई पलके खुल जाएँ
शौर्य-शक्ति हम में घुल जाएँ
मन में त्याग भाव तुल जाएँ
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
अपनी माता के आंसू कण
ओशो ने लिखा है कि मां की जीवन धारा भी एक अज्ञात, अत्यन्त अनजान विद्युत की धारा है। बच्चे की नाभि से पूरे व्यक्तित्व को पोषित करती है।
ReplyDeleteमुंदी हुई पलके खुल जाएँ
शौर्य-शक्ति हम में घुल जाएँ
मन में त्याग भाव तुल जाएँ
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
जिस भाव भूमि पर आपने ये पंक्तियां लिखी हैं वह वह हमें भावों से ओत-प्रोत कर गया। भावनाओं का अन्त नहीं होता। भाव ही स्वभाव बनते हैं। इन पंक्तियों के संकाल्प का प्रभाव भावों को गहनता से जोड़ता है।
हृदयस्पर्शी पोस्ट ...... माँ को नमन
ReplyDeleteसोते प्राणों के आलय में
ReplyDeleteविस्मृत गौरव -गान -निलय में
प्रतिपल होते साहस-लय में
चुभ जाएँ तीखे शर बन
जो देखा माता के आंसू कण
क्या कहूं? बहुत सुन्दर कविता है. उतनी ही सुन्दर भूमिका है. शुभकामनायें.
मुंदी हुई पलके खुल जाएँ
ReplyDeleteशौर्य-शक्ति हम में घुल जाएँ
मन में त्याग भाव तुल जाएँ
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
अपनी माता के आंसू कण
गहन भाव ...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ....!!आपकी रचना की श्रेणी ही अलग है .....!!कई बार पढेंगे ...!!
एक मार्ग दर्शन देती है ...काव्य का स्तर क्या होना चाहिए ....!!
लिखते रहें और अपने काव्य से हमें मार्ग दर्शन देते रहें ....!!
शुभकामनायें ...!!
सच है, हम सब भी यही कहें।
ReplyDeleteपाश्चात्य देशों में भी माँ को याद तो हमेशा ही करते हैं पर व्यवस्था ऐसी है कि उसके लिए कुछ खास करने के लिए शायद एक दिन ही मिलता है :).
ReplyDeleteवैसे आज एक दिन के लिए आपकी यह कविता मन की गहराइयों तक गई.माँ को इससे खूबसूरत तोहफा और क्या हो सकता है.
सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण रचना.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमाँ के लिए ये चार लाइन
ऊपर जिसका अंत नहीं,
उसे आसमां कहते हैं,
जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं!
आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आपको भी मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है आशीष जी. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना......मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
ReplyDeleteआज के हालातों को देखते हुए लगता है कि शुक्र है ये एक दिन तो है............वरना कौन पूछता है माँ को......
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव आशीष जी......
अनंत शुभकामनाएँ.
माँ के बारे में कुछ भी कह दिया जाय कम ही लगता है , और सच भी है अनन्त की कहाँ कोई सीमा होती है ... माँ की ममता का कोई ओर छोर नही....
ReplyDelete.
ReplyDeleteसच है, सब दिन माता-पिता को स्मरण करने के होते हैं ।
माता-पिता की स्मृतियों को कभी नहीं भुलाया जा सकता …
भावनापूर्ण रचना के लिए आभार !
भूमिका ने अधिक प्रभावित किया …
कविता अच्छी है कुछ ताल मेल गड़बड़ा रहा है लेकिन …
यथा - जो देखा माता के आंसू कण
# बहुत सारे आंसू कणों की बात है तो कहना होगा - जो देखे माता के आंसू कण
# एक आंसू कण की बात हो रही है तो - जो देखा माता का आंसू कण
आशा है, सकारात्मक ही लेंगे…॥
सुंदर रचना को और सुंदर बनाया जाए , यही श्रेयस्कर है …
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
ReplyDeleteअपनी माता के आंसू कण
आमीन......!!
माँ का आशीर्वाद सब पर यूं ही बना रहे |
ReplyDeleteसादर |
माँ सदैव पूजनीय है ... माँ अपने कष्ट छुपा कर बच्चों को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है ..... भले ही उसके अस्तित्व को नकार दिया जाये पर वो अपने बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है .... माँ की स्मृति में सुंदर रचना ... भाव भरी ॥
ReplyDeleteसुंदर भाव संयोजन से सुसज्जित बेहद अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति काश आज के समाज को भी यह ज़रा सी मगर अपने आपमें बेहद महत्वपूर्ण बात समझ आजाये तो कितना अच्छा हो की "बेटी नहीं बचाओ गए तो माँ कहाँ से पाऔगे।"
ReplyDeleteमां की ममता को शत-शत नमन !
ReplyDeleteसदा रहे आशीष तुम्हारा छोटी सी ये अर्जी माँ
ReplyDeleteमुझमे मेरा जो कुछ है वो तेरा ही निमित्त है माँ
इस कविता को जितनी बार पढ़ता हूं, मन नहीं भरता।
ReplyDeleteMaa to maa hai... uski jagah to koi bhagwaan bhi nahi le sakta... kavita bahut hi khubsurat hai..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
माँ के रोम-रोम में भगवान् के बाद कोई बसा होता है तो वो उसके बच्चे होते हैं पर उसके लिए वरदान सा होता है जब बच्चे उसकी आँखों से आंसू पोछने के लिए तत्पर होते हैं..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बेहद प्रभावी ... माँ को मेरा नमन ...
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