Wednesday, April 11, 2012

नाच उठा मयूर

आजकल दिल्ली प्रवास चल रहा है , कल शाम को अचानक काले  बादल आए  और पुरे शहर पर छा गए  . शाम को ५ बजे ही घनघोर अँधेरा . जैसे रात्रि के ८ बजे हो . कुछ पंक्तिया जेहन में आई तो मुलाहिजा फरमाएं .


नभ के प्रदेश में जलधर
फैलाते अपना आसन
अधिकार जमा क्रम -क्रम से
दृढ करते अपना शासन

आच्छादित  धीरे धीरे
है हुआ गगन अब सारा
लघुतम प्रदेश भी घन के
जालों से रहा ना न्यारा

अपने अति प्रिय जलदो को
लख अतुल समुन्नति धारी
है  मुग्ध   मयूरी -मानस
लें   हर्ष   हिलोरे   भारी

अंकों  में अन्तर्हित  कर
निज चपल चित्त -चावों को
यह  दर्शाती  नर्तन  से
अति अभिनन्दन -भावों को

हो भाग उस संमृद्धि में
ऐसी  भी चाह नहीं है
देखे केवल वैभव उनके
 इसके सुख की थाह नहीं है

 
 


27 comments:

  1. नभ के प्रदेश में जलधर
    फैलाते अपना आसन
    अधिकार जमा क्रम -क्रम से
    दृढ करते अपना शासन

    आच्छादित धीरे धीरे
    है हुआ गगन अब सारा
    लघुतम प्रदेश भी घन के
    जालों से रहा ना न्यारा
    कमाल है!! कवियों का मन तो एकदम मयूर ही होता है :) बढिया कविता.

    ReplyDelete
  2. देखे केवल वैभव उनके
    इसके सुख की थाह नहीं है
    वैभवशाली नगरी में रहने के बाद कवि की कल्पना हिलोरें मार रही हैं, उसका शिल्पांकन कविता के माध्यम से हम तक पहुंचा और हम अभिभूत हुए।
    :) बड़ा मुश्किल है इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर लेना। कैसे कर लेते हैं आप?

    ReplyDelete
  3. फ़रमाया गया वो जिसे आप मुलाहिजा कहते हैं।
    बड़ी शानदार कविता लिख दी है आपने तो!
    कृपया बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  4. अंकों में अन्तर्हित कर
    निज चपल चित्त -चावों को
    यह दर्शाती नर्तन से
    अति अभिनन्दन -भावों को

    मन मयूर का नाचना ....जीवन को एक नया आयाम दे रहा है .....! भावनाओं की बेहतर अभिव्यक्ति ..!

    ReplyDelete
  5. आप अपने ब्लॉग के साथ एक शब्द कोष लगाइए पहले. तब हम कुछ कमेन्ट करेंगे.
    फिलहाल दिल्ली की बारिश आपके शब्दों से अलंकृत हुई और हम पढकर धन्य हुए :)

    ReplyDelete
  6. padh kar laga ki ham kis yug kee kavita padh rahe hain. kahan se engineer ho likhane se to lakhata hai ki kurta pajama pahane kandhe par ek jhola latakaye koi kavi likha hoga.
    bahut sundar varnan kiya hai.

    ReplyDelete
  7. वाकई.............शिखा जी सही फारमा रही हैं...
    :-)
    दिमाग की मशक्कत हो जाती है अच्छी खासी.....

    हां मगर जब समझ आ जाती है तब दाद लाज़मी हो जाती है.....

    बहुत सुंदर आशीष जी....

    ReplyDelete
  8. सारा पानी वहीं बरसता,
    शेष सृष्टि में त्यक्त तरसता।

    ReplyDelete
  9. अधिकार जमा क्रम -क्रम से
    दृढ करते अपना शासन
    वाह ....ये एक कवि कि दुनियां है ....
    सुंदर वातावरण से ..शब्द धीरे धीरे कवि ह्रदय पर शासन जमा ही लेते हैं ....!!
    अद्भुत सृजन ....अद्भुत ...!!

    ReplyDelete
  10. अंकों में अन्तर्हित कर
    निज चपल चित्त -चावों को
    यह दर्शाती नर्तन से
    अति अभिनन्दन -भावों को

    पावस का यह रूप देख
    कवि चित्त चंचल हुआ
    भावों का यह रूप देख
    मन मेरा संदल हुआ ....

    तुम्हारी रचना की महक समा गयी है :):) बहुत सुंदर ... उत्कृष्ट रचना

    ReplyDelete
  11. आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है। आपने इसे बिम्बों से सजाया है। बिम्ब सुंदर तथा सधा हुआ है। यह कविता अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी है।

    ReplyDelete
  12. अद्भुभुत है
    कवि प्रकृति के प्रति कितना सम्वेदंशील होता है यह जीव्ंत महसूस कर रहा हू.

    ReplyDelete
  13. बहुत ही बढ़िया सर!

    सादर

    ReplyDelete
  14. उमड़ते मेघों के साथ मत्त मयूरों का सुन्दर चित्रांकन !

    ReplyDelete
  15. शिखा जी की बात से सौफ़ी सदी सहमत हूँ :) इतनी उच्च हिन्दी समझ नहीं आती कई बातें सर से ही निकल जाती है,

    ReplyDelete
  16. ek puranee baat yaad aa gaye..jangal me more naacha kisne dekha..rajpath par naachoge sab dekhenge...ab more dilli me naach ho aaur sab tak khabar naa pahunche..sahityik shabd sahityik rachna..sadar badhayee..aapke blog par pahli baar aana hua..tetala manch ko dhnywad..apne blog par aapko amantri kar raha hoon...sadar

    ReplyDelete
  17. सुंदर भाव अभिव्यक्ति लिए रचना.

    ReplyDelete
  18. अंकों में अन्तर्हित कर
    निज चपल चित्त -चावों को
    यह दर्शाती नर्तन से
    अति अभिनन्दन -भावों को
    क्या बात है आशीष जी. आज जबकि शुद्ध हिन्दी लुप्तप्राय है, ऐसे में भाषा की शुद्धता को न केवल जीवित रखना बल्कि उसमें रचना-कर्म करना स्तुत्य है. वरना देखती हूं, कि आज लोग केवल अंग्रेज़ी मिश्रित हिन्दी को ही समझ पाते हैं और शायद उसे ही शुद्ध हिन्दी भी मानने लगे हैं. बधाई. शुभकामनाएं. जय हिन्द.

    ReplyDelete
  19. आच्छादित धीरे धीरे
    है हुआ गगन अब सारा
    लघुतम प्रदेश भी घन के
    जालों से रहा ना न्यारा

    मौसम है आशिकाना
    अय दिल कहीं से उनको
    ऐसे में ढूंढ लाना ......:))

    ReplyDelete
  20. अपने अति प्रिय जलदो को
    लख अतुल समुन्नति धारी
    है मुग्ध मयूरी -मानस
    लें हर्ष हिलोरे भारी

    रचना के शब्द और भाव मन को आह्लादित कर रहे हैं।

    ReplyDelete
  21. नाच उठा मन मयूर ...धीरे-धीरे
    हर्ष हिलोरे ले रहा रचना के तीरे-तीरे..

    ReplyDelete
  22. it is very clear that , form the depth of heart you feel and as it is you wrote .....
    this is the example of honest writing

    ReplyDelete
  23. हो भाग उस संमृद्धि में
    ऐसी भी चाह नहीं है
    देखे केवल वैभव उनके
    इसके सुख की थाह नहीं है
    ..सबसे पहले तो इतने सुन्दर चित्रण की बधाई स्वीकारें .....और फिर इस सच की ..की वास्तव में इस वैभव को देख अपार सुख मिलता है

    ReplyDelete
  24. हो भाग उस संमृद्धि में
    ऐसी भी चाह नहीं है
    देखे केवल वैभव उनके
    इसके सुख की थाह नहीं है

    ख्पूब्सूरत शब्द चित्रण है पूरे माहोल का ...
    ऐसे मोसम को देखने की चाह पूरी हो जाय तो बात की क्या ... लाजवाब रचना है ..

    ReplyDelete
  25. मन खिल उठा पढ़कर...... अद्भुत शाब्दिक श्रृंगार लिए रचना

    ReplyDelete