Friday, December 24, 2010

नव जीवनपथ

  मै निकल पड़ा हूँ घर से  , सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
  जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद

अन्यमयस्क सा चला जा रहा, गुजर रहा निर्जन वन से
मेरे  विषम विषाद सघन हो उठे,  गए सब निर्मम बन के

आकुल- अंतर अगर न होता,  मै कैसे  निरंतर चल पाता
    चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता

  तृप्ति के स्वर्णिम घट दिखलाकर , मुझको  ना दो प्रलोभन 
  पल निमिष नियंत्रित आत्मबल से,सुखा डाले है अश्रु  कण

तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
डगमग में गति भर देते   विश्वास  ह्रदय का अणु भर  भी
 
शत  शत काँटों में उलझकर,उत्तरीय हो गए  क्षत छिन्न
          कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर  देखने को पदचिन्ह .



                               

40 comments:

  1. आकुल-अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता,
    चिर-तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता।

    अच्छी रचना , शब्दों और भावों का सुंदर समन्वय किया है आपने।
    ...शुभकामनाएं।

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  2. तृप्ति के स्वर्णिम घट दिखलाकर , मुझको ना दो प्रलोभन
    पल निमिष नियंत्रित आत्मबल से,सुखा डाले है अश्रु कण

    अहसासपूर्ण शब्दों और भावों की बेहतरीन बुनाई.जीवन की कशमकश को खूबसूरत हिंदी के शब्दों से समझाया आपने.
    ये जिजीविषा बनी रहे
    बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  3. अन्यमयस्क सा चला जा रहा, गुजर रहा निर्जन वन से
    मेरे विषम विषाद सघन हो उठे, गए सब निर्मम बन के

    मन कि गहन वेदना अभिव्यक्त हो रही है ..

    तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
    डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी

    जीवन में यूँ ही स्वयं पर विश्वास बनाये रहो ...

    बहुत खूबसूरती से अपने मन के भावों को चित्रित किया है ...सुन्दर शब्द चयन ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें

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  4. आगे बढ़ते जाना है,
    लक्ष्य सतत ही पाना है।

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  5. जीवन इसी का नाम है। साथ में याद हो पर क़दम न रुके, बढता ही रहे। नव पथ पर, निरन्तर....

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  6. आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता
    चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता

    बहुत प्रेरक रचना. सुन्दर भावों को शब्दों की माला में बड़े करीने से पिरोया है..बहुत सुन्दर

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  7. मै निकल पड़ा हूँ घर से , सम्मुख चलता पथ का प्रमादजो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद ....

    सुन्दर प्रेरणादायी रचना ,
    आभार।

    .

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  8. आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता
    चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता

    काव्यकला है आपके अन्दर .सुन्दर लिखा है

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  9. @महेंद्र जी. संगीता जी , शिखा जी , प्रवीण जी, मनोज जी, कैलाश जी, दिव्य अजी और कुसुमेश जी.

    आप सबका बहुत आभार उत्साह वर्धन के लिए .

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  10. यह पंक्तियाँ बहुत सुन्दर लगीं:
    "आकुल-अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता,
    चिर-तृप्ति अगर हो अंतर्मन में, चलने का उत्प्रेरण खो जाता"

    आप बहुत क्लिष्ट हिंदी में लिखते हैं पर बहुत ही खूबसूरत लिखते हैं..
    अब आता रहूँगा..

    "एक लम्हां" पढने ज़रूर आएं ब्लॉग पर..


    आभार

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  11. बहुत खूबसूरती से अपने मन के भावों को चित्रित किया है|आभार|

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  12. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  14. नाज़ुक भावनाओं की सुकोमल अभिव्यक्ति. बहुत-बहुत शुभकामनाएं .

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  15. Bahut sundar kavita.. kahin padhi in panktiyo ki yaad dila gayi..
    अभी कहां आरम बदा ये मूक निमंत्रण छलना है.. साथी मुझको मीलों चलना है.. साथी मुझको मीलों चलना है

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  16. आपकी कविताए हमेशा मुझे छायावादी युग की याद कराती है
    शब्द संयोजन और बिम्ब काबिल ए तारीफ है

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  17. आशीष भाई, आपकी रचना में एक अजब सा आकर्षण है। ऐसी अनोखी रचनाएं बहुत कम पढने को मिलती हैं।

    ---------
    अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
    मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

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  18. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  19. आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता ...
    अंतर की आकुलता ही सृजन की नींव है ...
    वेदना , वेदना को पार पाने का सन्देश सब है इस प्रेरक रचना में ..
    आभार !

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  20. तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
    डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी
    behad sunder.

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  21. कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह .

    बहुत सुंदर कृति-
    शुभकामनाएं

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  22. तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
    डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी

    आशा का उजास फ़ैलाती खूबसूरत प्रस्तुति.
    सादर
    डोरोथी.

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  23. ऐसी भाषा बहुत कम ही प्रयुक्त होती दीखती है आज हिन्दी ब्लोगिंग में..इसलिए रचना के भाव और शब्द सौन्दर्य ने आह्लादित कर दिया है...

    आपकी लेखनी सदा उन्नत रहे,ऐसे ही रचती रहे ,यही शुभकामना है...

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ,जैसे मनोहारी भाव हैं,वैसे ही प्रवाह और शब्द योजना भी..

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  24. तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
    डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी

    हर शब्द में बहुत गहरी बात झलक रही है , इतने गहरे भावों कि अभिव्यक्ति के लिए आभार .

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  25. तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
    डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी

    लेखन गतिमान रहे...

    आभार

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  26. नव वर्ष 2011
    आपके एवं आपके परिवार के लिए
    सुखकर, समृद्धिशाली एवं
    मंगलकारी हो...
    ।।शुभकामनाएं।।

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  27. अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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  28. शत शत काँटों में उलझकर,उत्तरीय हो गए क्षत छिन्न
    कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह .
    बहुत खूब
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें

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  29. काव्य कला की सुंदर प्रस्तुति .....
    शब्दों का अद्भुत संचय है आपके पास .....

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  30. बहुत सुन्दर कविता !
    आशीष जी, आपको और आपके परिवार को नए साल कि बहुत बहुत शुभकामनायें ! ये साल आपके लिए आनंदमय और सुखदायी रहे !

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  31. http://urvija.parikalpnaa.com/2011/01/blog-post_03.html

    aapki rachna hai

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  32. शत शत काँटों में उलझकर,उत्तरीय हो गए क्षत छिन्न
    कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह..

    प्रेरणा देते शब्द ... लाजवाब अभिव्यक्ति है ....
    आशीष जी ...आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...

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  33. २०१० की यादों को छांट छांट कर निकाला है आपने ....

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  34. मै निकल पड़ा हूँ घर से , सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
    जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद
    सुंदर रचना....

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  35. अच्छे शब्दों के चयन के लिए बधाई ! बहुत सुंदर

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  36. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ऐसा महसूस हुआ कि तालाब के किनारे किसी वट वृक्ष की छाँव पर बैठा हूँ सुंदर आकृति के शब्द फूलों से सजी फुलवारी के दर्शन कर रहा हूँ .

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  37. आशीष भाई, आज दुबारा आपकी रचना पढी, और कमेंट किये बिना न रह सका। सचमुच बहुत सुंदर हैं आपके भाव। हार्दिक बधाई।

    ---------
    मिल गया खुशियों का ठिकाना।
    वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?

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  38. आकुल-अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता,
    चिर-तृप्ति अगर हो अंतर्मन में, चलने का उत्प्रेरण खो जाता

    मै निकल पड़ा हूँ घर से , सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
    जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद

    शब्दों और भावों का सुंदर समन्वय. आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो

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