Sunday, October 17, 2010

नव दसकंधर

आज फिर लगायेंगे हम, दशानन के पुतले में अग्नि
नयन होगे हमारे पुलकित, सुनाई देगी शंख ध्वनि
सोच  खुश होगे, की नहीं वो ,अमर जैसे अम्बर और अवनि

उदभट विद्वता और  बाहुबल, छल कपट  और घमंड
पुलस्त्य कुल में जन्म लेकर भी  , जो बन गया  उदंड
श्रुति, वेद, ज्ञाता , परम पंडित, और  शिव भक्त प्रचंड


निज नाभि अमृत होकर भी, जो  अमरत्व न पा सका
राम अनुज को नीति बता ,भी  नीतिवान न कहला सका
धर्मज्ञ होकर भी पर स्त्री हरण , अधर्म है अपने को समझा न सका .


हर साल जलाया जाता वो , एक अक्षम्य अपराध  के खातिर
अब  रोज सीता हरण होता है ,अगण्य दसकंधर से गए हम घिर
मुखाग्नि उसको देता , मुख्य अतिथि बनके, नव रावण शातिर

वो कहता मुझ मरे हुए, के पुतले को जलाने से क्या पाओगे
जलाओ  जिन्दा रावण को , जिन्हें बहुतायत में तुम  पाओगे
नाभि अमृत का रहस्य ढूढो,असफल हुए तो शताब्दियों तक पछ्तावोगे .

13 comments:

  1. sateek abhivyakti.sach hai man men chhipe ravan ko jab tak na maaren tab tak vijayadashmi vyarth hai

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  2. बेहद सटीक रचना .रावण का सिर्फ दंभ ही उसके सभी गुणों को ढक गया.और आज हम सजीव रावणों को बक्श कर पुतले को जलाते हैं.क्या औचित्य है इस त्यौहार का.?.
    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.

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  3. बहुत उम्दा रचना...


    विजय-दशमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    सादर

    समीर लाल

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  4. वही रहस्य तो अब तक नहीं मिला आधुनिकों को।

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  5. .

    वो कहता मुझ मरे हुए, के पुतले को जलाने से क्या पाओगे
    जलाओ जिन्दा रावण को , जिन्हें बहुतायत में तुम पाओगे
    नाभि अमृत का रहस्य ढूढो,असफल हुए तो शताब्दियों तक पछ्तावोगे ...

    रावण ने सदैव ही ज्ञान की बात कही है। ज़रुरत है हमारे समझने की।

    सुन्दर , सामयिक प्रस्तुति।

    .

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  6. संगीता जी, शिखा जी , समीर जी , प्रवीण जी . दिव्या जी ,
    आप सबको विजय दशमी की शुभकामनाये .

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  7. रावण के पुतले जलाने से ज्यादा जरुरी है आज के रावणों का मर्दन .

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  8. बिल्कुल सही कहा, वो रावण तो पंडित था, गुणवान था, ऋषि पुत्र था फिर भी धिक्कार का पत्र बना, लेकिन आज के रावण तो अपनी ध्वजा पताका फहरा कर डंके की चोट पर सीताओं का हरण कर रहे हैं और राम अदालत की चौखट पर अपना सिर रगड़ रहे हैं. ये कलियुग है और कोई और राम अभी आना शेष है तभी तो इनरावणों का राज्य अशेष है.

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  9. बहुत अच्छी रचना

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  11. वो कहता मुझ मरे हुए, के पुतले को जलाने से क्या पाओगे
    जलाओ जिन्दा रावण को , जिन्हें बहुतायत में तुम पाओगे.
    बहुत उम्दा आशीष साहब.

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