कल गोधुलि में, किसी ने मेरे ,अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाया
क्षण भर को वितृष्णा जाग उठी , अकिंचन मन भी अकुलाया
दुर्भेद्य अँधेरे में भी, मन दर्पण , प्रतिबिंबित करता मेरी छाया
लाख जतन कोटि परिश्रम , पर अस्तित्व बिम्ब नजर न आया
विस्फारित नेत्रों से नीलभ नभ में , ढूंढ़ता अपने स्फुटन को
मार्तंड की रश्मि से पूछा , टटोला फिर निशा के विघटन को
क्या उसके कलुषित ह्रदय का , ये भी कोई ताना बाना है?
या उसके कुटिल व्यक्तित्व का , कोई पीत पक्ष अनजाना है
उठा तर्जनी किसी तरफ , चरित्र हनन, हो गया शोशा है
हम निज कुंठा जनित स्वरों से , अंतर्मन को दे रहे धोखा है
हम खोज रहे अस्तित्व अपना , जैसे कस्तूरी ढूंढे मृग राज
बिखर नहीं सकता ,कालखंड में , जिसकी त्वरित गति है आज
अपना अस्तित्व तलाशना आसान नहीं है, फिर जो हमें हमारी आत्मा स्वीकार कर ले वही तो सत्य है और उसके ही अनुगामी रहना भी.
ReplyDeleteकहते हैं खुद को तलाशना ही सबसे मुश्किल काम है.जिसने अस्तित्व पहचान लिया मानो जीवन सीख लिया.
ReplyDeleteजीवन दर्शन बेहतरीन शब्दों में समझाती रचना.
अच्छे शब्द, अच्छे भाव...अच्छी कविता...बधाई।
ReplyDeleteबहुत बार बहुत से पक्ष अनजाने रह जाते हैं ...स्वयं को खोजती हुई एक अच्छी रचना ....
ReplyDeleteहम खोज रहे अस्तित्व अपना , जैसे कस्तूरी ढूंढे मृग राज
बिखर नहीं सकता ,कालखंड में , जिसकी त्वरित गति है आज
जीवन गति का ही नाम है .....
उत्कृष्ट भावों से सजी अच्छी रचना
.
ReplyDeleteभाषा पर आपकी अद्भुत पकड़ है । जो आपकी रचनाओं को खूबसूरत बना देती हैं । अस्तित्व की तलाश तो जारी रहती है । और इसी तलाश के साथ सबका अस्तित्व एक दिन समाप्त हो जाता है। इसलिए गति ही जीवन है। अविराम चलते रहना ही उद्देश्य होना चाहिए।
.
bahut se sarthak. seekh deti aapki te kirti
ReplyDeletesadhubad
happy diwali
सही प्रश्न उठाये हैं और सही उत्तर भी सुझाये हैं।
ReplyDelete@रेखाजी, शिखा जी, संगीता जी , महेंद्र जी .
ReplyDeleteअस्तित्व की खोज तो चलती ही रहेगी .
@दिव्या जी , आलोक जी , प्रवीण जी
ReplyDeleteधन्यवाद आपका उत्साह वर्धन के लिए . प्रकाश पर्व की शुभकामनाये .
Aashish ji
ReplyDeleteअस्तित्व का प्रश्न जीवन का सबसे बड़ा प्रश् है जिसकी तलाश में हम भटकते रहते हैं. इसे ही कभी मान -सम्मान - अभिमान और न जाने क्या क्या समझ बैठाते हैं. मूल्याङ्कन करते है सुधार परिष्कार कर आगे बढ़ते है. अभिमान भी खरः नहीं है , खराबी तो तब शुरू होती है जब हम वहीँ रुक जाते मूल्यांकन नहीं करते. जड़ता ही विनाश है. यह अभिमान और अहंकार से आगे नहीं बढ़ने देती. सभी के जीवन में यह क्षण आता ही है. कुछ पार हो जाते हैं, कुछ भटक जाते हैं और कुछ डूब जाते हैं. स्वमुल्याकन अनिवार्य है यहाँ. अपना इलाज स्वयं करना है. डॉ, तो लक्षण के आधार पर दवाये ही बता सकता है वह भी तब जब बिमारी को आपने सही से प्रस्तुत किया हो. और डॉ. भी पहुछा हुआ हो, मुन्ना भाई न हो.गंभीर रचना के लिए बधाई. दीपावली की शुभ कामनाएं
क्यूँ तुम्हारा मन अकुलाया ,अस्तित्व बिम्ब जब नजर न आया?
ReplyDeleteसबने तुम्हे आशीष पठाया ,फिर वितृष्णा को काहें जगाया |
कंटक-पथ और गहन अँधेरा ,प्रतिबिम्बों पर तम का साया
साहस ,शक्ति और विनय से बनती है महान कोई काया |
दीपशिखा के स्वागत में मै रश्मिरथी बनकर हूँ आया
सबको उठो गले लगा लो ,अहंकार की छोडो माया |
चिंतन का सन्देश देती हुई उत्तम कोटि की कविता ,
ReplyDeleteआशीस जी आप कानपुर में कहा हो ? मैं बिरहाना रोड में हू
उठा तर्जनी किसी तरफ , चरित्र हनन, हो गया शोशा है
ReplyDeleteहम निज कुंठा जनित स्वरों से , अंतर्मन को दे रहे धोखा है
bahut hi sundar
आपको दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये !
इस ज्योति पर्व का उजास
ReplyDeleteजगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
विस्फारित नेत्रों से नीलभ नभ में , ढूंढ़ता अपने स्फुटन को
ReplyDeleteमार्तंड की रश्मि से पूछा , टटोला फिर निशा के विघटन को
कितना सौंदर्य है इन पंक्तियों में.
सुन्दर, बहुत सुन्दर!
आभार!
हम खोज रहे अस्तित्व अपना , जैसे कस्तूरी ढूंढे मृग राज
ReplyDeleteबिखर नहीं सकता ,कालखंड में , जिसकी त्वरित गति है आज ...
सुन्दर रचना ... लाजवाब .
शब्दहीन..
ReplyDelete