कविता के कुछ भाव उठे , एक सजग दृष्टि जो डाली
सूखे शब्द हो उठे अलंकृत, चमक उठी स्याही की काली
सोचा मैंने जो सजग है , वो अग्रणी प्रगतिशील भी होंगे
घनेरे शब्दों के चितेरे . चैतन्य विचारो के झील भी होंगे
लिख सकते है प्रकृति और घनीभूत पीड़ा की गहराई को
सुन सकते है चाँद तारो की बाते ,सूंघ सकते हैअमराई को
छंदों में बांधे, भावो को, निश्छल प्रेम ग्रन्थ लिख जाते है
क्लिष्ट,सुरुचिपूर्ण,नूतन शब्दों के केशव भी मिल जाते है
मन हर्षित हुआ देखकर, देदीप्यमान लेखनी प्रवर शूरों को
बिखरे पड़े है नेपथ्य में भी , उत्सुकता से जरा घूरो तो
छलक रहा शब्दों से काव्यामृत,नवजीवन देता तरुणाई को
स्फूर्ति जगाते, नवचिंतन करते, बहा देते देशप्रेम पुरवाई को
शीश झुकाकर नमन करता हूँ, नवयुग के इन पथ प्रदर्शक को
"साहित्य समाज का दर्पण है" नमन इस सूक्ति प्रवर्तक को
सूखे शब्द हो उठे अलंकृत, चमक उठी स्याही की काली
सोचा मैंने जो सजग है , वो अग्रणी प्रगतिशील भी होंगे
घनेरे शब्दों के चितेरे . चैतन्य विचारो के झील भी होंगे
लिख सकते है प्रकृति और घनीभूत पीड़ा की गहराई को
सुन सकते है चाँद तारो की बाते ,सूंघ सकते हैअमराई को
छंदों में बांधे, भावो को, निश्छल प्रेम ग्रन्थ लिख जाते है
क्लिष्ट,सुरुचिपूर्ण,नूतन शब्दों के केशव भी मिल जाते है
मन हर्षित हुआ देखकर, देदीप्यमान लेखनी प्रवर शूरों को
बिखरे पड़े है नेपथ्य में भी , उत्सुकता से जरा घूरो तो
छलक रहा शब्दों से काव्यामृत,नवजीवन देता तरुणाई को
स्फूर्ति जगाते, नवचिंतन करते, बहा देते देशप्रेम पुरवाई को
शीश झुकाकर नमन करता हूँ, नवयुग के इन पथ प्रदर्शक को
"साहित्य समाज का दर्पण है" नमन इस सूक्ति प्रवर्तक को
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ReplyDeleteआशीष जी,
कवी के व्यक्तित्व को दर्शाती एक बेहतरीन प्रस्तुति । निसंदेह कवी की लेखनी से निकली रचना युद्ध को विराम और विचारों को आयाम दे सकती है। विश्व के हर कवी को मेरा नमन ।
एक प्रश्न --
क्या गद्य लेखन वाले भी कवियों की श्रेणी में आते हैं ?
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दिव्या जी , कवि भी एक लेखक ही है और और उसमे और आलेख लिखने में केवल विधा का अंतर है . विधांतर से लेखनी का प्रभाव कभी कम नहीं होता , मेरा आशय लेखक से है , धन्यवाद .
ReplyDelete.
ReplyDeleteमेरे मन का संशय दूर करने के लिए आभार। अब मैं भी थोडा इतरा सकूंगी।
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मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
ReplyDeleteलिख सकते है प्रकृति और घनीभूत पीड़ा की गहराई को
ReplyDeleteसुन सकते है चाँद तारो की बाते सूंघ सकते है अमराई को
कवियों के मन को आपने सफलतापूर्वक पढ़ा है।...अच्छी रचना।
वाह बहुत सुन्दर एवं सटीक कविता आशीष भाई .
ReplyDeleteपथ प्रदर्शक कवि का दर्शन कराती सुन्दर कविता।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकवि मन का टोह लेती बहुत ही खूबसूरत कविता.
ReplyDeleteभाव, शब्द और बनावट सब बेहतरीन हैं .
कविता पर बाद में ....शिखा के कमेन्ट पर हंसी आ रही है ...:):)
ReplyDeleteहाँ तो अब ....
कवि मन या कहूँ की लेखक मन को टटोलती सी और रचनाकार की लेखनी से संतुष्ट होती सी यह रचना बहुत अच्छी लगी ...कवि अपने मन को टटोलता है जब की तुम कवि मन को ढूँढ रहे हो ....सुन्दर और उत्कृष्ट शैली में लिखी अच्छी रचना ...
महेंद्र जी, प्रवीण जी, शिखा जी , संजय जी सुशील भाई
ReplyDeleteआपको कविता पसंद आयी , मुझे आन्तरिक ख़ुशी महसूस हुई . आभार
बहुत ही सुंदर और प्रभावी ढंग से कवि और कविता की सार्थकता को बयां किया आपने..... एक उत्कृष्ट रचना ....
ReplyDeleteAre wah.. m takin it as a compliment for all of us.. thank you :)
ReplyDeleteमोनिका जी
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
मोनाली जी
सभी लेखको के लिए ये कॉम्प्लीमेंट है , उसमे आप तो निर्विवाद रूप से शामिल है .
सच है
ReplyDeleteसाहित्य संगीत कलाविहीना साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीन
छलक रहा शब्दों से काव्यामृत,नवजीवन देता तरुणाई को
ReplyDeleteस्फूर्ति जगाते, नवचिंतन करते, बहा देते देशप्रेम पुरवाई को
bahut सुन्दर rachna hai ... shabdon aur bhaavon ka mishran ...
अब मेरी हंसी का कारण तो शिखा ने हटा ही दिया ....
ReplyDeleteअरे दि ! मैंने यह लिखा था.- "पर इतनी खूबसूरत कविता क्या सिर्फ सिगरेट पिने वाले कवि/लेखकों के लिए ही है ?:)( तस्वीर )"
ReplyDeleteपर फिर आशीष जी ने कहा कि नहीं तस्वीर में सिगरेट नहीं है..तो मैंने मान लिया :(
अब हालांकि मुझे तो माचिस भी दिख रही है और जलने का पोज भी:)
:):) एक हाथ से सिगरेट मुँह में लगायी है और दुसरे से जला रहे हैं ..इसमें तुमने मान कैसे लिया था ? हा हा ...
ReplyDeleteअब दि ब्लॉग के मालिक की बात उनकी पोस्ट पर तो माननी ही पड़ेगी न ? उन्होंने कहा कि तस्वीर वाले महोदय खांस रहे हैं.तो ठीक भाई खांस ही रहे होंगे :).
ReplyDeleteसंगीता जी , मुझे नहीं पता था की मुक्तिबोध जी की ये धुम्रपान करती तस्वीर है . मुझे तो लगा था की शायद कोई मुद्रा हो .
ReplyDeleteकवि के पास अपार शक्ति होती है , शायद तभी हमारे राजाओं के दरबार में कवि का सदा ही एक श्रेष्ठ स्थान एंव सम्मान होता था
ReplyDeleteकवि - एक पथ प्रदर्शक -------कितनी सहजता से कवि मन के भावों को संग्रहीत किया है।
ReplyDeleteशिखा जी , मुझे लगा था की सचमुच कोई मुद्रा है , लेकिन अब मै अपनी बात वापस ले रहा हूँ . हा हा ,
ReplyDeleteभाई.... एक बात कहूँ... क्या मुझे अपना चेला बनाना पसंद करेंगे.... ऐसी हिंदी मैं भी लिखना चाहता हूँ.... इम्प्रेशन पडता है.... और मेरी अंग्रेजी मिक्स हिंदी मुझे ही खराब लगती है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता...कवि मन या लेखक मन कितनी सहजता से इतनी बड़ी बातें लिख जाता है...
ReplyDeleteaashish ji sarvpratham aapko itni khoobsurati se apni baato ko kahne ke liye.
ReplyDeletebahut hi achha laga aapke behatar shabdo ka chunav uski itani gahari aur anuthe sangam sa sheetal avam pravah mai rachna
छलक रहा शब्दों से काव्यामृत,नवजीवन देता तरुणाई को
स्फूर्ति जगाते, नवचिंतन करते, बहा देते देशप्रेम पुरवाई को
शीश झुकाकर नमन करता हूँ, नवयुग के इन पथ प्रदर्शक को
"साहित्य समाज का दर्पण है" नमन इस सूक्ति प्रवर्तक को
aapki kavita gagar me sagar wali kahawat ko chritarh karne ki adhbhut xhmta hai
hriday seaapko badhai
poonam
शीश झुकाकर नमन करता हूँ, नवयुग के इन पथ प्रदर्शक को
ReplyDelete"साहित्य समाज का दर्पण है" नमन इस सूक्ति प्रवर्तक को
हमारा भी नमन नवयुग के इस पथ प्रदर्शक को....!!
शिखा जी बहुत खूब .....!!
(अब कोई राजकमल वालों से पूछे उन्हें मुक्तिबोध की यही तस्वीर मिली थी छापने के लिए .....)
काव्यामृत ग्रहण किया..
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