Friday, April 20, 2012

गेहूं बनाम गुलाब




खिल रहे है  बगिया में   ,
शुभ्र   धवल गुलाब
विटप गीत  गुनगुना रहे ,
मुदित मन रहा नाच

छन -छन  आती सोंधी सुगंध  ,
है घनदल छाये हुए .
कलियों की स्मित मुस्कान
चन्द्रकिरण में नहाये हुए

मधुकर का मधुर  मिलन गीत

पिक की विरह तान
मंदिर की दिव्य वाणी   ,
मस्जिद से आती है अजान

कलियों की चंचल  चितवन ,

मदन का पुष्प बान
लतिका का कोमल गात,
देख रहा अम्बर विहान

कोयल की  मधुर कूक ,

क्या क्षुधा हरण  कर सकती है ?
कर्णप्रिय  भ्रमर गीत ,
माली का  पोषण कर सकती है ?

सुमनों के सौरभ हार,

सजा सकते है  कुंचित  केश
बिखरा सकते है खुशबू,
बन सकते  देवो का अभिषेक

पर क्या ये सजा सकते है ,

दीन- हीन आँखों में ख्वाब ?
क्षुधा शांत गेहूं ही करता,
फिर मन भाता है गुलाब

Wednesday, April 11, 2012

नाच उठा मयूर

आजकल दिल्ली प्रवास चल रहा है , कल शाम को अचानक काले  बादल आए  और पुरे शहर पर छा गए  . शाम को ५ बजे ही घनघोर अँधेरा . जैसे रात्रि के ८ बजे हो . कुछ पंक्तिया जेहन में आई तो मुलाहिजा फरमाएं .


नभ के प्रदेश में जलधर
फैलाते अपना आसन
अधिकार जमा क्रम -क्रम से
दृढ करते अपना शासन

आच्छादित  धीरे धीरे
है हुआ गगन अब सारा
लघुतम प्रदेश भी घन के
जालों से रहा ना न्यारा

अपने अति प्रिय जलदो को
लख अतुल समुन्नति धारी
है  मुग्ध   मयूरी -मानस
लें   हर्ष   हिलोरे   भारी

अंकों  में अन्तर्हित  कर
निज चपल चित्त -चावों को
यह  दर्शाती  नर्तन  से
अति अभिनन्दन -भावों को

हो भाग उस संमृद्धि में
ऐसी  भी चाह नहीं है
देखे केवल वैभव उनके
 इसके सुख की थाह नहीं है

 
 


Monday, April 2, 2012

सुनो ! मत छेड़ो सुख तान

मधुर  सौख्य के विशद भवन में
छिपा हुआ  अवसान

निर्झर के स्वच्छंद गान में,
छिपी हुई वह साध

जिसे व्यक्त करते ही उसको,
लग जाता अपराध
इस से ही  वह अविकल प्रतिपल
गाता दुःख के गान !   सुनो मत छेड़ो सुख तान

महा सिन्धु के तुमुल नाद में,

है भीषण उन्माद
जिसकी लहरों के कम्पन में,
है अतीत की याद
तड़प तड़प इससे  रह जाते
 उसके कोमल प्रान!  सुनो मत छेड़ो सुख तान


कोकिल के गानों पर ,
बंधन के है पहरेदार
कूक कूक कर केवल बसंत में ,
रह जाती मन मार
अपने गीत -कोष से
जग को देती दुःख का दान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

हम पर भी बंधन का पहरा
रहता है दिन रात
अभी ना आया है जीवन का
सुखमय स्वर्ण प्रभात
इसीलिए अपने गीतों में
रहता दुःख का भान! सुनो मत छेड़ो सुख तान