Saturday, December 11, 2010

निज मन की व्यथा

अपने प्रिय को खोने का दारुण दुःख . भरे ह्रदय से श्रधांजलि .ये कविता पुष्प  उन्हें समर्पित .

नील निलय शरद का अतिसुन्दर
विधु  प्रगतिवान है अपने पथ पर
छलके ललाट से श्रम स्वेद कण
सांध्य मलय अठ्खेलित प्रतिक्षण

लेती नीरवता अनंत अंगड़ाई
कही दूर उस नभ  उपवन  में
उसकी स्मृति की सी गहराई
स्पंदित होती है इस   मन में

कहता व्यथित मन  से सोने को
आंखे आतुर  ,आंसू पिरोने को
थकी सो रही मेरी मौन व्यथा
क्यों तुझे सुनाऊ अपनी कथा 

नैराश्य गहन अवचेतन क्षण का
अतुल गुहा सी घन  तमस लपेटे
 अति दारुण दुःख का नीरव क्रंदन
 भरे दृग अश्रु की टकसाल समेटे

बंद दृगो में सपनो के चित्र बना जाता
खो मधुर स्मृति में, वेदनाये दुलराता
सजनी तुम कौन अपरिचित लोक गयी
निष्पलक लोचन में तिमिर लहराता







 

33 comments:

  1. आशीष ,
    इस रचना पर आज कुछ कह नहीं पा रही हूँ ....यह श्रद्धांजली पुष्प हैं ...बस इनको महसूस किया जा सकता है ...

    बहुत सुन्दर शब्दों में आज तुमने इस पुष्पांजलि में मन की सारी व्यथा को उकेर दिया है..उत्कृष्ट रचना
    ... ..

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  2. लेती नीरवता अनंत अंगड़ाई
    कही दूर उस नभ उपवन में
    उसकी स्मृति की सी गहराई
    स्पंदित होती है इस मन में

    व्यथा को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है आपने।
    भावों के प्रकटन के लिए आपने सटीक शब्दों का चयन किया है।
    रचना ने मन को गहराई तक प्रभावित किया।

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  3. vyathit hriday ke shraddha pushp hain ye...
    inhe pranaam!

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  4. एक एक शब्द में छिपी गहराई और नीरवता।

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  5. गहराई से लिखे गए मार्मिक शब्दों की बानगी....

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  6. अति सुंदर ,बहुत दिनों बाद कुछ मिला पढने को जिस से तबियत खुश हो गयी

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  7. आज कुछ और नही बस मौन और अहसास ....
    सारी वेदना जैसे शब्दों में उतर आई है.
    एक उच्च स्तरीय रचना..

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  8. @संगीता जी, महेंद्र जी, प्रवीण जी , मोनिका जी , मासूम साहब , अनुपमा जी. और शिखा जी.

    आप सबका कोटि कोटि धन्यवाद .

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  9. अति सुन्दर और भावनात्मक कविता !
    मन की वेदना को आपने मूर्त रूप दे दिया है

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  10. मन की व्यथा को बखूबी प्रस्तुत किया है आपने इस रचना में।
    विनम्र श्रद्धांजलि !

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  11. our sweetest songs are those
    which tell us the saddest note
    भावों को ऐसे पिरोया है
    दिल फिर रोया है

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  12. कविता में जो मार्मिकता है उसके लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास. सबसे बड़ी बात है उस दर्द को जीकर उतारना सबके वश की बात नहीं . मेरी श्रद्धांजलि .

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  13. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! मन की वेदना को बखूबी शब्दों में पिरोया है!

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  14. अत्यंत मार्मिक भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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  15. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  16. नैराश्य गहन अवचेतन क्षण का
    अतुल गुहा सी घन तमस लपेटे
    अति दारुण दुःख का नीरव क्रंदन
    भरे दृग अश्रु की टकसाल समेटे
    bahut bhawpurn

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  17. बहुत सुन्दर पुश्पांजली !

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  18. बंद दृगो में सपनो के चित्र बना जाता
    खो मधुर स्मृति में, वेदनाये दुलराता
    सजनी तुम कौन अपरिचित लोक गयी
    निष्पलक लोचन में तिमिर लहराता

    बहुत मार्मिक प्रस्तुति..

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  19. सुन्दर शब्दों में सहेज लिया आपने वेदना को.

    'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
    hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकते हैं.

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  20. गहन भावों को समेटे सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  21. bahut hi gahrai se likhi bahut hi marmik post.
    shabdo ka chayan badi khoobsurati ke saath kiya hai aapne .apne kisi priy ko khone ka jo ahsas hota hai use bakhoobi chitrit kiya hai aapne.
    bahut bahut achhi post
    poonam

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  22. सर्प और सोपान....वटवृक्ष के लिए भेजिए , परिचय, तस्वीर , ब्लॉग लिंक के साथ rasprabha@gmail.com par

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  23. सुंदर रचना . कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.comपर भी आएं

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  24. खूबसूरत रचना के लिए शुभकामनायें !

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  25. आशीष जी, आपके मन की व्‍यथा हमारे हृदय को भी छू गयी।

    ---------
    छुई-मुई सी नाज़ुक...
    कुँवर बच्‍चों के बचपन को बचालो।

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  26. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! धन्यवाद |

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  27. आशीष जी , रचना में सुन्दर भाव हैं . श्रद्धांजलि-पुष्प से युक्त अपने कर-पल्लव का एक पात मुझे भी समझिये !

    यूँ ही भटकते आप तक चला आया . एक प्राणी ने स्तरीय लेखकों के रूप में आप का नाम बड़े गर्व-गुरूर से मेरी और फेंका था , फिर संयोग से आंच पर आपका यह वाक्य देखा - '' एक दो जगह ,अमरेन्द्र जी को मैंने कविता पर सलाह देते देखा भी है ख़ुशी हुई की एक समीक्षक इस ब्लॉग जगत को मिलने वाला है .''

    सोचने लगा कि कहाँ कहाँ सलाह देने की चिरकुटई मैंने की तो 'पलाश' का ध्यान आया क्योंकि अब लगभग चुप ही रहता हूँ ! वहीं दो-तीन कविता पर कुछ बोला हूँ शायद . फिर कानपुरही ब्लॉग मंडली में देखा आपको तो यकीन सही लगा . उसे सलाह फलाह मत मानना भाई . हम कौन होते हैं यहाँ ब्लॉग जगत में किसी को सलाह-फलाह देने वाले ! बस कोई हमारे ब्लॉग तक आता है तो हम उसके ब्लॉग तक चले जाते हैं या फिर आप जैसा कोई 'वाच' करने वाला होता है उसके ब्लॉग पर . :)

    पिछली कविताओं को देखा , अच्छा प्रयास कर रहे हैं आप ! पिछली पोस्ट पर आपने मेरे प्रिय कवि मुक्तिबोध का फोटो लगाया है , बहुत अच्छा लगा . किसी ने फोटो पर कुछ कहा है , मुझे तो अच्छी लगी ! का कहें अपन भी चाटे गट्टे टाइप है :) हा हा हा !

    आप खूब बढियां लिखें ! शुभकामनाएं !

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  28. अपने प्रिय को खोने का दारुण दुःख .....

    ये कौन छोड़ गया साथ नभ उपवन का
    बन गया जो सबब दारुण दुःख का ....???

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  29. काश ,आज जयशंकर प्रशाद जीवित होते ,आपकी रचना को पढकर यूँ लगा जैसे सुंघनी साहू के मोहल्ले में घूम रहा हूँ और गली के नुक्कड़ पर के किसी मकान में बैठे प्रसाद जी आवाज देकर कह रहे हैं मुझे पढ़ा है ना मेरे बाद आशीष को पढ़ना

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