Tuesday, June 12, 2012

साधना

नव घन जल से भरकर
अंकों में चपल तरंगे
इस लघु सरिता के तन में
उमड़ी  है अमिट  तरंगे


निज प्रिय वारिधि दर्शन को
उन्माद उत्कंठा  मन में
बस एक यही आकांक्षा
है समां गई कण कण में

निज अखिल शक्ति भर गति में
वह त्वरित चली जाती है
कष्टों की करुण कहानी
क्या कभी  याद आती है ?


पथ की अति विस्तृतता का
भय तनिक ना विचलित करता
निज लघुता का चिंतन भी
मानस की शांति ना हरता


नहीं सोचती पथ में ही
यह मेरी लघुतम काया
निज अस्तित्व मिटा लेगी
बच सकती शेष ना छाया

जीवन से बढ़कर कुछ भी
यदि पा जाती वो आली
बलि कर देती दर्शन हित
वह भी सरिता मतवाली

23 comments:

  1. टंकार के बाद प्रत्यंचा से छूटे लक्ष्यभेदी तीर की तरह इस कविता के भाव सीधे अर्जुन के तीर की तरह मछली की आंख (निशाने) पर लगते हैं।

    इस मार्ग पर, जिसे अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है, अपना सर्वस्व विसर्जन के बाद ही, वह मिलता है जिसको पा लेने के बाद कुछ पाना शेष नहीं बचता। जैसे सरिता स्वयं को सागर में समा देने के बाद संपूर्णता को प्राप्त कर लेती है।

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  2. पथ की अति विस्तृतता का
    भय तनिक ना विचलित करता
    निज लघुता का चिंतन भी
    मानस की शांति ना हरता

    जीवन को नयी दृष्टि देती आपकी यह रचना महत्वपूर्ण है .....!

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  3. लगता है छायावाद चतुष्टयी की मे पचम राग जल्द जुड जायेगा.
    प्राक़ृतिक सुन्दरता अब विस्तृत आकार ले रही है.
    आभार.

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  4. जीवन से बढ़कर कुछ भी
    यदि पा जाती वो आली
    बलि कर देती दर्शन हित
    वह भी सरिता मतवाली
    bahut sundar bhav....

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  5. सरिता के माध्यम से जीवन के प्रति सचेत और निरंतर आगे बढ़ाने की प्रेरणा देती अद्भुत रचना .... बहुत सुंदर

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  6. बहुत सुन्दर आशीष जी.....
    काश कभी ऐसा हो के कि हमारी टिपण्णी आपकी कविता पर भारी पड़े......
    :-)
    (जतन से इकट्ठा कर रहीं हूँ कुछ चमत्कारिक शब्दों को..)

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  7. पहले तो अनु के एक सुर में एक सुर मेरा भी मिला लीजिए.:)
    फिर ..प्रकृति को लेकर गज़ब के बिम्ब भाव संजोय हैं.आपकी कविता पढ़ने का अपना अलग ही आनंद है.
    पुनश्च: कविता के साथ २ पंक्तियों का सन्दर्भ दे देंगे तो सोने पे सुहागा होगा और हम जैसे अज्ञानियों का कुछ उद्धार.

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  8. जीवन तो चेतना है ...रुक जाना जड़ता है ...
    आपकी कविता जड़ से चेतन की ओर का मार्ग है ...
    दिव्यता देता हुआ ..अद्भुत सृजन ....
    शुभकामनायें

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  9. वाकई नदी का जीवन मनाव के लिए बहुत ही प्रेरणा दायी होता है जो बहुत कुछ सिखाता है नदी के माध्यम से जीवन के प्रति सचेत करती प्रेरणात्म्क पोस्ट, साथ ही बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन से सजी उत्कृष्ट रचना :-) और एक बात कहूँ इस बार आपकी रचना समझने में हमेशा की तरह कठिनाई महसूस नहीं हुई मुझे :-)

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  10. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-06-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... ये धुआँ सा कहाँ से उठता है .

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  11. वाह .. प्रवाहमय शब्‍द .. उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ...आभार

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  12. खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी है आपने बधाई

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  13. नदी से समुद्र तक की यात्रा! शानदार!

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  14. नहीं सोचती पथ में ही
    यह मेरी लघुतम काया
    निज अस्तित्व मिटा लेगी
    बच सकती शेष ना छाया ...

    निज का अस्तित्व वैसे भी कहां रहता है इस विस्तृत विशाल सागर के सामने ... पर फिर भी काया मिट जाती है और आत्मा में लीन हो जाती है ...
    तेज ... प्रवाहमय ... अप्रतिम रचना ..

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  15. पथ की अति विस्तृतता का
    भय तनिक ना विचलित करता
    निज लघुता का चिंतन भी
    मानस की शांति ना हरता

    ....बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति....

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  16. न जाने कितने हिमकणों का साथ लिये बहती है सरिता..

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  17. सफल हो रहा है यह साध कण-कण को अमृत में बोर करके..

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  18. नदी की ही तरह ही प्रवाहमयी रचना...
    हार्दिक बधाई।

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  19. यह सरिता का बहता जल
    कितना निर्मल कितना पावन...
    कविता के ये बहते शब्द
    कहें कथा इक मनभावन...

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  20. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  21. जीवन से बढ़कर कुछ भी
    यदि पा जाती वो आली
    बलि कर देती दर्शन हित
    वह भी सरिता मतवाली

    क्या खूब लिखा है !

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  22. नहीं सोचती पथ में ही
    यह मेरी लघुतम काया
    निज अस्तित्व मिटा लेगी
    बच सकती शेष ना छाया

    वाह , सुंदर बिम्ब और ओजस्वी भाव ....

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  23. शब्द दर शब्द बहती नदिया सी कविता .....

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