Sunday, December 9, 2012

वधशाला --2

राजनीति और धर्मनीति भी , भेद -निति में सबसे आला
काल प्रबल के आगे सब कुछ , भूल गया वो मतवाला 
अतुलित बल योगेश अलौकिक , चक्र सुदर्शन धारी थे 
उसी कृष्ण की एक वधिक ने , वन में खोली बधशाला 



हुआ कलिंग विजय तब ही , जब लाखो का वध कर डाला 
रण स्थली को देख शोक में , था अशोक वह मतवाला 
यह अनर्थ हा ! यह अनर्थ क्या , एक जरा सी इच्छा थी '
पत्थर दिल को भी प्रियदर्शी ,कर देती है बधशाला



सबसे कहता फिरा जगत में , है तूफां आने वाला
मगर न माना सत्य किसी ने , समझा है भोला भाला
अरे वही मनु आदि पुरुष , तुम उसको नौवा या नूह कहो
बैठ नाव में देख चूका है , इस दुनिया की बधशाला





खिलजी ने चित्तोड़ मिटाने का, विचार ही कर डाला
पीना चाहे स्यार !सिंहनी , के हाथो ही से प्याला
जीते जी जल गई !सती के , नहीं धर्म को आंच लगी
वीर पद्मिनी के जौहर ने , खूब जगाई बधशाला



Tuesday, December 4, 2012

बधशाला

रातः ,संध्या, सूर्य ,चन्द्रमा, भूधर, सिन्धु ,नदी ,नाला
जल, थल, नभ क्या है ? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला 
विश्व नियंता कभी न देखा , पर इतना कह सकता हूँ 
जिसने विश्व रचा है उसने ,प्रथम बनाई बधशाला



कौन जानता है पल भर में , किसका क्या होने वाला 
राजतिलक की ख़ुशी मची थी,, रंग-भंग सब कर डाला 
दशरथ मरण राम वनवासी, सीता हरण भरत गृह त्याग
कुमति कैकयी के उर बैठी , घर में खोली बधशाला


कुषा पैर में चुभी तभी तो , उसका मूल मिटा डाला
ऐसा ही पागल होता है , सच्ची एक लगन वाला
स्वाभिमान का दिव्य देवता , कैसे निज अपमान सहे
महा हठी चाणक्य ने , खोली महानंद की बधशाला .


 तड़प रहा बेताब पलंग पर, हुआ प्रेम में मतवाला
आती होगी आज पिऊंगा, दिलबर से दिल भर प्याला 
उठा एकदम चिपट गया , तब काट  पैतरा काट  दिया 
सैरन्ध्री बन भीमबली ने , खोली कीचक  बधशाला 


दूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
दुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला