कोई विषवमन करता है किसी की आड़ में
कोई लटका हुआ है, दुरभिसंधि के ताड़ में
किसने किसके पीठ में, नुकीला छुरा भोका
ना जाने कितने तिनके है, उनकी दाढ़ में
मुखालफत करने की भी, एक मियाद होती है
पानी अगर रुक जाए रूह में, तो दाद होती है
लिबलिबी सी सोच लेकर, वो सोच सकते क्या
इंसानियत सर पटकती है, औ फरियाद रोती है
मुँह फुलाए गोलगप्पे में , कड़वा पानी का स्वाद
इर्ष्या की पराकाष्ठा भर देती है , नन्हे घाव में मवाद
बख्शी है उनको खुदा ने, दिल की बेरुखी बेहिसाब
ठान ली कंटीले बेर ने , स्निग्ध केर को करना है बर्बाद
नव कंचन घट से जैसे ,छलकता हुआ हलाहल हो
अंतर्मन में कभी उनके, छिछला सा भी कोलाहल हो
मन में तीव्र धधकती , जुगुप्सा का बडवानल हो
युग से चलती आयी तृष्णा का , शायद कोई अस्ताचल हो
निज भविष्य की चिंता में , गैरों के पथ में कांटे बोये
आत्म श्लाघा है कुल्हाड़ी जैसे, इज्जत है अपनी खोये
लेकिन वो अपना दीदा खोता , जो अंधे के आगे रोये
"आशीष" प्रबल है माया जग की , इंसां के सोचे क्या होए
कोई लटका हुआ है, दुरभिसंधि के ताड़ में
किसने किसके पीठ में, नुकीला छुरा भोका
ना जाने कितने तिनके है, उनकी दाढ़ में
मुखालफत करने की भी, एक मियाद होती है
पानी अगर रुक जाए रूह में, तो दाद होती है
लिबलिबी सी सोच लेकर, वो सोच सकते क्या
इंसानियत सर पटकती है, औ फरियाद रोती है
मुँह फुलाए गोलगप्पे में , कड़वा पानी का स्वाद
इर्ष्या की पराकाष्ठा भर देती है , नन्हे घाव में मवाद
बख्शी है उनको खुदा ने, दिल की बेरुखी बेहिसाब
ठान ली कंटीले बेर ने , स्निग्ध केर को करना है बर्बाद
नव कंचन घट से जैसे ,छलकता हुआ हलाहल हो
अंतर्मन में कभी उनके, छिछला सा भी कोलाहल हो
मन में तीव्र धधकती , जुगुप्सा का बडवानल हो
युग से चलती आयी तृष्णा का , शायद कोई अस्ताचल हो
निज भविष्य की चिंता में , गैरों के पथ में कांटे बोये
आत्म श्लाघा है कुल्हाड़ी जैसे, इज्जत है अपनी खोये
लेकिन वो अपना दीदा खोता , जो अंधे के आगे रोये
"आशीष" प्रबल है माया जग की , इंसां के सोचे क्या होए