Monday, June 23, 2014

विफल जीवन

ह्रदय कानन में अब फूल खिलते 
सुमन रंजित राग विचित्र से 
मधुर मोहक सौरभ संग से 
अति सुवास रहे नित ही यहाँ 


या नवीन अनुपम मोहिनी 
यद्दपि थी खिलती कुसुमावली
पर निरर्थक ही रह के सदा 
सकुच पुष्प गिरै सब भूमि पे 


मधुर सौरभ सूंघ न थे किये 
सकल पुष्प किसी सुरसज्ञ ने 
सुखित नेत्र ना समझे कमी 
निरख चित्र सुराग समूह को 


मुकुल सादर कंठ प्रदेश में 
रुचिर माला बना पहिने नहीं 
विफल जीवन था उनका हुआ 
रहित होकर एक गुणज्ञ से .