Sunday, September 30, 2012

भाव के पात्र

उछ्ल  कर उच्च कभी सोल्लास
थिरक कर भर चांचल्य अपार
धीर सी  कभी ध्यान में मग्न
कुंठिता लज्जा सी साकार

मृदुल गुंजन सी गाती गान
बजाती कल कल  कर करताल
नृत्य बल खा खा करती, देख !
कभी भ्रू कुंचित कर कुछ भाल

वीचि -मालाओ में कर बद्ध
राशि के राशि अपरिमित भाव
पहुचती सरिता अचल समीप
चाहती अपना स्पर्श -प्रभाव

शैल से टक्कर खा खा किन्तु
बिखरती लहरें भाव समेत
ह्रदय के टुकड़े कर तत्काल
कठिन पीड़ा से बनी अचेत

नदी का सुनकर कातर नाद

ह्रदय पिघलते  और विकम्पित गात्र !
कोई जाकर सरिता को समझाए
उपल भी कही भाव के पात्र ?

Sunday, September 16, 2012

ब्लॉग्गिंग के दो साल -सम्हले या बेअसर हुए .

क्या जाने क्या हाल हुआ है, सम्हले या बेअसर हुये,
सहमे सहमे आये यहाँ पर, जीवन जीने पसर गये।

उपरोक्त  पंक्तियाँ  श्री प्रवीण पाण्डेय जी की   उदगार है जो उन्होंने मेरे ब्लॉग के एक वर्ष पूर्ण होने पर लिखे गए पोस्ट कर टिप्पणी के रूप प्रकट किया था..ये पंक्तियाँ  ब्लॉग जगत में किसी भी नवागंतुक के मनोभावों को परिभाषित करती है. सीमित ज्ञान .और  मुट्ठी भर शब्दों के सहारे अपने आप को अभिव्यक्त करना, शायद किसी भी  नवप्रवेशी (कम से कम मै) के सामने  एक चुनौती सदृश ही होगी . अभिव्यक्ति के इस  सहज और सरल  .मंच का ,विगत दो वर्षों से मै एक अदना सा  सदस्य हूँ , और आपने आप को भाग्यशाली मानता हूँ की विद्वजनो के संगत में रहने का अवसर मिला .

मै इश्वर का आभारी हूँ की उसने मुझे बचपन में साहित्य जगत की कुछ अप्रतिम विभूतियों के वात्सल्य पूर्ण स्पर्श और उनके आशीर्वाद के लिए चुना जो अभी भी इतने सालो बाद मेरे साथ बना हुआ है.बाल्यकाल में दिनकर जी की ओजस्वी वाणी में :"आग की भीख"  सुनना और महादेवी जी की वात्सल्य पूर्ण आमोद अभी भी मेरी मानस पटल पर अंकित है

अरे रे मै आप सबको क्या सुनाने लगा था , असली बात जो कहनी है वो ये कि आज हमारे ब्लॉग को अवतरित हुए पुरे दो वर्ष हो गए.. संयोग ये भी कि भगवान विश्वकर्मा के जन्मतिथि के साथ मेल खाता है अवतरण दिवस.जो मेरे जैसे विश्वकर्मा के अनुसरण करने वाले (अभियांत्रिकी ) के लिए अपार हर्ष का विषय है. विगत दो वर्षों कि इस छोटी सी यात्रा में विद्वजनो के आशीर्वचन भी मिले और कभी कंटक पथ से भी गुजरना पड़ा जो कि सामान्य सी ही बात है . मूलतः मै कविता लिखने कि कोशिश करता हूँ , मन के भावों को स्पष्ट और सटीक शब्द देने का प्रयास भी , जाने कितना सफल या असफल हुआ ये तो समय के गर्भ में है.


स्वान्तः सुखाय शुरू किया हुआ ये ब्लॉग लेखन कई अद्भुत मित्रो के सान्निध्य क़ा कारण भी बना जिनकी प्रशंसा और आलोचना मेरे अनियमित कवित्त लेखन को संजीवनी प्रदान करता रहता है . एक ख़ुशी और मिली इस ब्लॉग लेखन के माध्यम से , हमारे एक पारिवारिक मित्र है जो एक राष्ट्रिय टीवी चैनेल में सर्वोच्च पद पर है, उनकी नजर पड़ी मेरे ब्लॉग पर , और उन्होंने कहा कि मुझे  उनके चैनल द्वारा आयोजित एक कवि सम्मलेन में अपनी कुछ पंक्तियाँ पढनी है. मैंने उनसे विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया कि मै उस काबिल नहीं हूँ अभी . अब आत्मप्रशंसा तो हो नहीं सकती मुझसे काहे कि तुलसी बाबा कि पंक्तिया याद दिलाती रहती है

"आत्मप्रशंसा अनल सम, करतब कानन दाह"
 अंत में ब्लॉग जगत का शुक्रिया कि मुझ अकिंचन की लिखी पंक्तियों को अपनी गुणी नजरों से परखता है अपने टिपण्णी के माध्यम से.. उम्मीद है ये कारवां चलता रहेगा रुक -रुक के ही सही.. आपका सबका प्यार और प्रोत्साहन अभिभूत करता है , आप सबका ह्रदय से  आभार व्यक्त करता हूँ .

मानस सागर में उठता ,जिन भावो का स्पंदन.
तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन
.








Friday, September 7, 2012

चकोरी भूली


विगत जुलाई के उत्तरार्ध से  ब्लाग लिखने और आप सबको  पढने से वंचित रहा . कारण स्व-जन का स्वास्थ्य कारण और फिर कुछ आलस भी है .कई दिनों से सोच रहा था की कल से लिखूंगा लेकिन आलसबस टालता रहा .  अनुपमा त्रिपाठी जी कुछ दिन से रोज पूछती थी , क्यों नहीं लिख रहे , एक दिन अनुलता जी ने भी संदेह  जाहिर किया कि क्या मैंने ब्लाग से मुँह मोड़ लिया आज शिवम् मिश्रा जी  ने भी यही प्रश्न किया और जोर दिया पोस्ट डालने कि  तो   . मैंने सोचा ज्यादा देर हो उससे पहले लिख डालूँ  नहीं तो    . क्या लिखूं आप लोग समझ गए होगें ना .:). तो हमने लिख ही दिया , अच्छा या बुरा वो नहीं पता .


नीले वितान के नभ में 

जलदो का जाल नहीं है 
चपला की प्रतिपल चंचल 
क्रीडा का काल नहीं है 

दिन के प्रकाश को संध्या 
ढँक अरुणांचल से अपने 
दे थपकी सुला रही है 
है लीन दृगो में सपने 

अति निमिड तिमिर ने धीरे 
निज कृष्ण प्रकृति के बल से 
अम्बर- प्रदेश में आकर 
अधिकार जमाया छल से 

पर उड्नायक ने तम का 
यह परख प्रपंच लिया है 
निज अनुचर दल संग आकर 
आवृत आकाश किया है 

निज धवल धाम से निशिपति 
गगनांगन शुभ्र बनाते 
लख तिमिर पलायन उडगण
हँस हँस कर मोद मनाते

वो भोली बाल चकोरी 
खो बैठी सुध बुध सारी
लख निज प्रिय शशलांछन की
शरद -सुन्दरता न्यारी 




पर हाय ! चकोरी भूली 
शशि ने भावुकता खोई 
है गह्वर चन्द्र- ह्रदय में 
ले गया चुरा चित्त कोई .