मै निकल पड़ा हूँ घर से , सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद
अन्यमयस्क सा चला जा रहा, गुजर रहा निर्जन वन से
मेरे विषम विषाद सघन हो उठे, गए सब निर्मम बन के
आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता
चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता
तृप्ति के स्वर्णिम घट दिखलाकर , मुझको ना दो प्रलोभन
पल निमिष नियंत्रित आत्मबल से,सुखा डाले है अश्रु कण
तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी
जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद
अन्यमयस्क सा चला जा रहा, गुजर रहा निर्जन वन से
मेरे विषम विषाद सघन हो उठे, गए सब निर्मम बन के
आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता
चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता
तृप्ति के स्वर्णिम घट दिखलाकर , मुझको ना दो प्रलोभन
पल निमिष नियंत्रित आत्मबल से,सुखा डाले है अश्रु कण
तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी
शत शत काँटों में उलझकर,उत्तरीय हो गए क्षत छिन्न
कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह .
कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह .