Tuesday, October 7, 2014

बधशाला -20


  1. मेरे आगे ! क्या गायेगा , आये तो गाने वाला 
  2. एक "भारती" कि वीणा है ,बाकी साज जला डाला 
  3. बेगाना ! गाना समझेगा , मस्ती समझे मस्ताना 
  4. मेरी लय में महाप्रलय है , जालिम समझे बधशाला .

  1. ख़बरदार जो मेरे ऊपर , अगर किसी ने रंग डाला 
  2. रंगा हुआ हूँ , मुझ पर कोई , रंग नहीं चढ़ने वाला 
  3. देश धर्म के दीवानों कि, जलती पग पग पर होली 
  4. जिस दिन चाहूँ , चला जाउंगा , फाग खेलने बधशाला.

  1. मेरे आगे ही ! रो लेवे , हो कोई रोने वाला 
  2. ख़बरदार जो मर जाने पर , अगर कही आंसू डाला 
  3. जिसके दिल में आग लगी हो , वही चिता मेरी फूंके 
  4. कर्म करे तो बांध कफ़न सिर, जाये सीधे बधशाला .

Friday, September 26, 2014

बधशाला -19





अरे नीच जयचंद बना तू, भाई को खाने वाला
आँख फोड़कर हाय कैद में , राय पिथौरा को डाला
धन्य चंदबरदाई तुमको , धन्य तुम्हारे साहस को
खूब मुहम्मद गोरी की , गजनी में खोली बधशाला


ताड़ गया चालाकी वह भी , था आफत का परकाला
बड़ी शान से मुलाकात को , चला मरहठा मतवाला
लगा शिवाजी को सीने से , अफजलखां ने वार किया
मार बघनखा वही खोल दी, शेर शिवा ने बधशाला


गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला
वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला

Thursday, September 4, 2014

बधशाला -18





हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, कोई भी हो मतवाला 
जात पात और छुआ छूत का , यहाँ नहीं परदा काला
इसी घाट से राजा उतरे , यही रंक के लिए खुला 
भेद भाव को भूल सभी को , एक बनाती बधशाला.


तेरा इनका जिस्म एक सा , रंग रूप भी है आला
ये भी बेटे उसी पिता के , है जिसने तुझको पाला
एक बाप की संताने क्या , नहीं प्रेम से रहती है 
मिलो गले से और खोल दो , छुआ छूत की बधशाला .


मृगनयनी को छोड़ अरे तू , दाब बगल में मृगछाला 
आसन मार बैठ मरघट में , वीर मुंड के लै माला
सत्यम शिवम् सुन्दरम का तू , जाप किये जा ध्यान लगा 
तब जग के कण कण में तुझको , दिख पड़ेगी बधशाला 

Monday, August 11, 2014

बधशाला -17


मेरे शव को हाथ लगाये , जिसके कर में छाला 
मेरी अर्थी में, घायल जो , हो कन्धा देने वाला 
जिसके दिल में आग लगी हो , वही चिता मेरी फूंके 
कर्म करे तो बांध कफ़न सर , सीधे जाये बधशाला 


गर्म रक्त से ! मेरा तर्पण , हो कोई करने वाला 
सहसबाहु का परशुराम ने , जैसे वंश मिटा डाला 
तृप्त आत्मा होगी मेरी , कहीं जुल्म का नाम न हो 
जहाँ मिले कोई भी जालिम , वहीँ खोल दो बधशाला 


जो कुछ समझा मैंने उतना, वीरों का यश लिख डाला 
क्षमा करो अपराध ! भूल है , नहीं है मेरा दिल काला 
रहे शेष जो उनकी पदरज , निज मस्तक पर धरता हूँ 
देश धर्म हित खोल चुके , या देख चुके जो बधशाला

Saturday, July 12, 2014

मंगई की छाती

बिन बरसा आषाढ़ 
आंसू हो गए गाढ़
होठो में फटी बिवाई 
अब हंसने को तरस रहे.


फुहारों की छुवन अब कहाँ 
अंगो में सिहरन अब कहाँ 
देखे मेढ़ो को टुकुर टुकुर 
नैना सुखने को तरस रहे.


सन्नाटा है घर बार में 
अंखुआ सूख गए बंसवार में.
कातिक में कैसे खेत बुवाई 
बैल नधने को तरस रहे .


फटी हुई है मंगई की छाती
घर में भूजी भाँग है थाती 
आशा भी अब अस्ताचल को 
पौ फटने को तरस रहे .

Monday, June 23, 2014

विफल जीवन

ह्रदय कानन में अब फूल खिलते 
सुमन रंजित राग विचित्र से 
मधुर मोहक सौरभ संग से 
अति सुवास रहे नित ही यहाँ 


या नवीन अनुपम मोहिनी 
यद्दपि थी खिलती कुसुमावली
पर निरर्थक ही रह के सदा 
सकुच पुष्प गिरै सब भूमि पे 


मधुर सौरभ सूंघ न थे किये 
सकल पुष्प किसी सुरसज्ञ ने 
सुखित नेत्र ना समझे कमी 
निरख चित्र सुराग समूह को 


मुकुल सादर कंठ प्रदेश में 
रुचिर माला बना पहिने नहीं 
विफल जीवन था उनका हुआ 
रहित होकर एक गुणज्ञ से .

Monday, May 26, 2014

प्रार्थना


छिपी हुई वो तेज राशि
आ ! अंतर आलोकित कर दे 
दुर्बलता के सघन तिमिर में 
ज्योतिर्मयी आभा भर दे


संपुट दुविधा का खोल लूँ 
प्रज्ञा हो अंतर्मन के लोल में 
तामस -तमस को घोल दूँ 
हो सुधा शाद्वल इस खगोल में 


अपना भूला मार्ग खोज लूँ
जिधर छिपी रत्नों की खान 
उनमे से एक दो बीन लूँ
आत्मिक बल , जाग्रति , उत्थान .