Thursday, December 26, 2013

बधशाला -16


श्री कृष्ण का सर्व प्रथम , जब था पूजन होने वाला 
क्रोधित हो यह देख, गालियाँ लगा सुनाने मतवाला 
अरे बोल वह कब तक सुनता , सुनली उसकी सौ गाली
वही राजसूय यज्ञ बना , शिशुपाल दुष्ट की बधशाला





हाथ कफ़न से बाहर कर दो,ह्रदय नहीं मेरा काला
देखे दुनिया ! खाली हाथो , जाता है जाने वाला 
कहा सिकंदर ने मरते दम , मेरे गम में मत रोना 
वे ही रोये जिनके घर में , नहीं खुली हो बधशाला






गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला
वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला





Tuesday, November 26, 2013

बधशाला -15

हिंसा से हिंसा बढती है , पीयो प्रेम रस का प्याला 
नफरत से नफरत को वश में , अरे कौन करने वाला 
"बापू" के हित अगर तुम्हारी , आँखों में कुछ आंसू है 
बंद करो लड़ाई,मत  खोलो , हिन्दू मुस्लिम बधशाला.



मंदिर तोड़ मुसलमां सहसा , बोल उठा अल्ला ताला
मस्जिद फूंक और हिन्दू का , बजा शंख घंटा आला 
जान न पाए दोनों पागल , उसके नाम अनेकों है ,
किया धर्म बदनाम खोल , रहमान राम की बधशाला.



नाच गया किसकी थापों पर , जिन्ना होकर मतवाला 
किसके सगे हुए ये गोरे, रहा हमेशा दिल काला
"क्रिप्स" लगाकर आग हिन्द में , सात समुन्दर पर गया 
बजा रहा था "चर्चिल" ट्रम्पेट , देख हमारी बधशाला

Monday, November 18, 2013

तत्व

तरल तरंगो सी क्षण क्षण नव
केलि कामनाएं करती

थिरक थिरक मेरे मानस में

अतुलित आन्दोलन भरती




वीचि वृन्द के चंचल उर में

उत्कंठा ने ले अवतार
चित्र विचित्र खीच दिखलाया
मणि मंडित आभरण अपार





उनसे उदगत दीप्त दीप्ति से

सज्जित सुन्दर उनके अंग
उस कल्पित आकर्षक छवि पर
मन में ऐसी उठी उमंग 





लड़ी जगत चिंता की टूटी 

कर देता सब कुछ निस्सार

उन्हें मिली वो मणियाँ सुन्दर

इसी अर्थ सारे व्यापार




नित नवीन श्रम जनित खेद से

खिन्न हुआ मै अति ही श्रांत

मुकुलित चर्म-चक्षु , उन्मीलित
मानस के लोचन अभ्रांत 





उनसे बाह्य जगत की मणियाँ

लज्जित थी पा गहरी हार

वो फूली नहीं समाई मन में
मिला देख सच्चा भंडार 





हंस कर मैंने निज जड़ता पर

हर्षित होकर खोई भ्रान्ति

सुलझ गई जीवन की उलझन
मेरी मिटी अपरिमित श्रांति .

Thursday, November 14, 2013

विश्व वैचित्र्य

कही अतुल जलभृत वरुणालय
गर्जन करे महान
कही एक जल कण भी दुर्लभ
भूमि बालू की खान

उन्नत उपल समूह समावृत
शैल श्रेणी एकत्र
शिला सकल से शून्य धान्यमय
विस्तृत भू अन्यत्र

एक भाग को दिनकर किरणे
रखती उज्जवल उग्र
अपर भाग को मधुर सुधाकर
रखता शांत समग्र

निराधार नभ में अनगिनती
लटके लोक विशाल
निश्चित गति फिर भी है उनकी
क्रम से सीमित काल

कारण सबके पंचभूत ही
भिन्न कार्य का रूप
एक जाति में ही भिन्नाकृति
मिलता नहीं स्वरुप

लेकर एक तुच्छ कीट से
मदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग

कैसी चतुर कलम से निकला
यह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.

Monday, November 11, 2013

स्वागत




ज्योतिहीन जीवन मग में 
कंटक कुल संकुल मग में 
भटक भटक पद छिन्न हुए 
मुझ से मेरे भिन्न हुए.


चुन तो लीं कलियाँ सुकुमार 
गुंथा हिममय सौरभ सार
अलियों कि गुन गुन गुंजार 
थी स्वागत गायन झंकार .


स्वर्ण घटित उन घड़ियों में 
रत्नो की फूलझड़ियों में 
तुम आयी जब मेरे द्वार 
मै दौड़ा लाने उपहार .


भूला ! मै तुम मेरी निधि हो 
फिर तव स्वागत किस विधि हो ?
करमाला या हो मनुहार 
करलो इनको ही स्वीकार .

Wednesday, November 6, 2013

क्या लिखुँ

क्या लिखूं ? जो गूढ़ हो .
ज्ञान पर आरूढ़ हो .
पुष्टि मांगती है मेधा
सिद्ध हो या मूढ़ हो .


क्या लिखूं ? जो छंद हो
सद चित हो, आनंद हो
मन पे ऐसा हो असर
ज्यों जीभ पर मकरंद हो ,


क्या लिखूं ? जो राग हो .
विराग हो ,अनुराग हो
कौन्तेय जैसा धर्मधारी
 कृष्ण सा बीतराग हो .


क्या लिखूं ? जो स्वस्ति हो .
हो भक्ति या , विरक्ति हो
प्रदक्षिणा हो ज्ञान की
नैराश्य , न आसक्ति हो .

.
 वह लिखूं जो सुविचार हो
सगुण और निर्विकार हो 
द्वेष दम्भ अतिरंजित न हो 
 हो  न्यून पर ओंकार हो .

Thursday, October 3, 2013

क्यों


छल छल करती सरिता में क्यों 
छलका करुण प्रवाह? 
निर्झर क्यों झर झर बिखराता
नयन नीर का वाह ?




लतिका के नत आनन पर क्यों ? 
झलका अन्तर्दाह ?
तरु क्यूँ पत्र -अधर -कम्पन से 
भरते नीरव आह ?




सांध्य गगन की मलिनाकृति से 
क्यों प्रकटित अवसाद ?
श्यामल भूधर झींगुर रव मिष
क्यों करते दुःख नाद ?

Monday, September 16, 2013

आकुल अंतर के तीन वर्ष

फिर विश्वकर्मा पूजा के लिए निर्धारित दिन आ पहुंचा , कहने को तो श्री विश्वकर्मा को देवलोक का एकमात्र अभियंता का पद प्राप्त है लेकिन तीन साल पहले उनकी पूजा अर्चना के बाद ( व्यावसायिक कर्म में शामिल है ) इस ब्लॉग को बनाने की प्रेरणा मिली . शुरुवाती हिचकिचाहट और सीमित ज्ञान का डर , कुछ मित्रों के मार्गदर्शन और सतत उत्साहवर्धन से वाष्पित हो गया और और फिर कालांतर में संघनित होकर बूँद बूँद बरसने लगा निज मन सुख खातिर।
 कुछ शब्दों को जोड़कर लिखने की कला में (तुकबंदी भी कह सकते है ) कुछ पंक्तियाँ जोड़ जाड के लिखकर ऐसी अद्भुत अनुभूति होती थी जैसे ब्रम्हा को सृष्टि की सबसे अद्भुत कृति बनाकर होती होगी . कविता कर्म का ककहरा भी नहीं जानता था (वैसे अभी भी नहीं जानता हूँ ) नाही कविता के व्याकरण से भिज्ञ था . बहुत सारे विद्वान मित्रो को पढना , उनको रचना धर्मिता से कुछ सिखने की कोशिश करना मुझे सबसे प्रिय कार्य लगता है. ,
 ब्लॉग लेखन साहित्य का अंग है या नही ये मेरे सोचने का विषय नही (अपने आप को सुयोग्य नही पाता हूँ ) मै अपने बहुत सारे साथी ब्लोगरों को पढने की भरसक कोशिश करता हूँ . विभिन्न विधाओ के सुरुचिपूर्ण आलेख और कविताओं का रसपान का मौका यहाँ सुगमता पूर्वक उपलब्ध है . कुछ नाम भी लेने का मन है जिनको मै पढ़ पाता हूँ ( काश सारे ब्लॉग पढ़ पाता ) . प्रवीण पाण्डेय जी की लेखनी से निकले ललित निबन्ध मुझे बहुत आकर्षित करते है और शायद पूरे ब्लॉग जगत को भी . फुरसतिया महाराज श्रीयुत अनूप शुक्ल जी का व्यंग लेखन गुदगुदाता है . शिखा वार्ष्णेय जी की घुमक्कड़ी गाथा और संस्मरण कथा बांध के रखती है तथा सुश्री अमृता तन्मय , अनुपमा पाठक , अंजना दी , की कवितायेँ रस सिक्त कर जाती है .अनुपमा दी (त्रिपाठी ) और संगीता दी (स्वरुप) को पढना आह्लादित करता है . विभिन्न विधाओं में पारंगत और बहुत सारे मित्र ब्लोग्गर है जिनको पढने की युगत में रहता हूँ .
 इस अद्भुत विधा से मुझे कुछ मिला हो या नही , मैंने मानवी भावनाओ के अधीन प्रेम सिक्त कुछ आदरणीय और प्रिय रिश्तो को भी जिया है, कई बार कठिन परिस्थितियों में मित्रो का संबल महसूस किया . मुझे अपनी कविता ( अकविता भी हो सकती है ) को आप सभी गुनीजनो के सामने प्रस्तुत कर जो हर्षानुभूति होती है और आपकी शब्द टिपण्णी से जो उर्जा मिलती है वो किसी मसिजीवी के लिए वरदान से कम नही है...
 मेरा ब्लॉग लिखने कि आवृति कछुए कि चाल जैसी है और कई बार जामवंत कि जरुरत महसूस होती है (अब ये मत कहियेगा कि मै अपने आप को हनुमान बोल रहा हूँ ). कई बार मित्रों ने याद दिलाया है कि महीनो से मैंने कुछ पोस्ट नही किया और मै उनको बहादुर मानव / मानवी मानता हूँ कि मुझे झेलने के लिए (आ बैल मुझे मार टाइप भी सुनने को मिला है :)) कटिबद्ध है 
मै अपने प्रिय मित्रो को आश्वस्त करना चाहूँगा की उन्हें ,मेरी उटपटांग शब्द रचना को झेलने से छुटकारा नही मिलने वाला है . और अभी डटे रहने का इरादा है . भले ही आवृति कम हो . अंत में बस इतना कहकर समाप्त करना चाहूँगा कि ब्लॉग्गिंग नही होती तो मेरे जैसा अल्पज्ञानी अपनी भावनाओं को शायद शब्द नही दे पाता .सभी मित्रो का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ और आभार प्रकट करता हूँ . .

Thursday, September 5, 2013

बधशाला -14

कान लगाकर ! क्या सुनता है ,बोतल की कुल कुल आला
मधुबाला को लिए बगल में , क्या बैठा है मतवाला
बेटे का कर्तव्य यही क्या , दुनिया मुंह पर थुकेगी
मस्त पड़ा तू मधुशाला में , देख रही मां बधशाला.


सोम सुधा को सुरा बताये , पड़ा अक्ल पर क्या ताला
द्रोण कलश को मधुघट कहता ,हुआ नशे में मतवाला
सुरा पान का कहाँ समर्थन , वेदों को बदनाम न कर
अरे असुर क्यों खोल रहा है , दिव्य ज्ञान की बधशाला 


बने रहेंगे मंदिर जिनमे , नित्य जरी जाये माला
बनी रहेगी मस्जिद जिसमे , सदा आये अल्ला -ताला
है भारत आज़ाद ! देखले , आँख खोलके ओ काफ़िर
सभी जगह खुल रही ! खुलेगी , मधुशाला की बधशाला

Wednesday, August 21, 2013

सूरज की यात्रा

बधशाला के अलावा  बहुत दिनों से मेरे ब्लाग पर  और कुछ नहीं पोस्ट हुआ . परिवर्तन के तौर पर फेसबुक पर अपनी कोलकाता यात्रा के दौरान डाले गए इस अनुभव को ब्लॉग पर डालने के कई मित्रो के सुझाव के बाद हिम्मत पड़ी . तो नोश फरमाएं .


कोलकाता जाना है . अभी १० बजे जाने वाली हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस ८ घंटे लेट बताई जा रही है . गनीमत है की घर बैठे इन्टरनेट से पता चल जाता है की ट्रेन कितनी लेट है और कहाँ है अभी, पहले जाने कितनी बार स्टेशन पर घंटों इंतजार करना पड़ा है ट्रेन का . १२ घंटे लेट चली है राजधानी एक्सप्रेस कानपुर से कोलकाता के लिए , गति देखकर कच्छप महाराज भी शरमा जाये . बाहर कोहरे की धुंध है और अंदर यात्रियों की उच्छ्वास की . ऐसे ही किसी वाहन की यात्रा करते समय किसी महापुरुष के दिमाग की उपज होगा ".नौ दिन चले ढाई कोस" वाला मुहावरा .

.
. सामने वाली बर्थ पर एक भद्र महिला अपने २ पुत्रियों के साथ यात्रा कर रही है . बच्चियों की उम्र यही कोई ४-५ साल होगी . लंच के बाद महिला ने उनसे कहा ऊपर की बर्थ पर जाकर सोने के लिए .कैसे कहा इसकी एक बानगी देखिये . "बेटा नीनी यु वांट टू गो अपस्टेयार्स देन क्लाइंब फ्रॉम प्रापर प्लेस" बच्ची को प्रापर प्लेस मेरे कंधे दिखे और उसने झट डिमांड कर दी. ऊपर के बर्थ पर सोते हुए नीनी की बड़ी बहन ५ वर्षीय बड़ी बहन टिमटिम मासूमियत से "पटा ले मुझे मिस काल से " गाते हुए अचानक अपनी मम्मी को आवाज देती है "मम्मा नेचर इज कालिंग ". मै असमंजस में हूँ की कम्बल से मुंह ढक लूं या या प्रॉपर प्लेस यानि अपना कन्धा फिर से ऑफर करूँ..


 निनी और टिमटिम दोनों सो गई है और उनकी मम्मा सिडनी शेल्डन को बांच रही है . आंग्ल भाषा की किताबे लुभाती तो बहुत है और यात्रा में लेकर भी चलता हूँ ताकि पडोसी यात्री पर पढ़ा लिखा होने का एम्प्रेस्सन रहे लेकिन सिमित ज्ञान आड़े आता है और बस कुछ पन्ने पढ़कर तकिया के नीचे .ट्रेन विन्ध्याचल में खड़ी है . सामने विन्ध्य पर्वत श्रेणी पर हरीतिमा वेणियों की तरह गुंथी दिख रही है और वेणी याद आते ही मन बल्ले बल्ले करने लगता है जाने क्यूँ .  धुंध गहराने लगी है , विन्ध्य पर्वत श्रेणिया अब नजरों से ओझल हो चुकी है , भगवन मार्तंड छुप गए है मुगलसराय आने वाला है . निनी उठकर आँखे मीच रही है .उनकी मम्मा बिना पूछे बता रही है की उनके पति ओ एन जी सी के देहरादून मुख्यालय में कार्यरत है . पहली बार मेरी नजर उनकी हाथो की उंगुलियों पर गई जब निनी के लिए ग्वावा प्लेटफोर्म से लेकर मैंने उन्हें दिया .देखिये आपलोग अतिश्योक्ति मानना हो तो मान लीजियेगा . उनकी उंगुली में कई सारे सूरज चमक रहे थे . सूरज से आंख मिचोनी खेलने का ताब ज्यादा देर रह नहीं सका.


खिड़की से परदे हटाकर देखा तो अँधेरे के साम्राज्य में जुगनुओं की रौशनी और नितीश कुमार के राज्य में कही दूर दूर टिमटिमाती रौशनी दिखाई पड़ रही थी .कोच अटेंडेंट से पुछा की अगला स्टोपेज कौन सा है , उससे पहले की निनी की मम्मी बोल पड़ी "गया" . जाने मुझे क्यू ऐसा महसूस होता है की पथ प्रदर्शक हो या अगला स्टोपेज बताने वाला हमेशा आत्मविश्वास से लबरेज रहता है . सूरज वाली उंगुलियों के चेहरे पर वो दिखा एक मुस्कान के साथ .आत्मविश्वास वाली जी.
 .
गया से आगे निकल चुके है ., ट्रेन में कुछ बुद्ध धर्मावलम्बी अपने चोगेनुमा वस्त्र में चढ़े है. मंगोलियन लुक वाले है. शायद जापान से होगे. मगध राज्य , अशोक , बुद्ध और गया, स्वर्णिम इतिहास. भूख लग आई है . ट्रेन लेट होने से खाने में राशनिंग कर रहे है रेलवे वाले .टिमटिम और नीनी ने खाने के लिए शोर मचाना शुरू कर दिया है.. उनकी मम्मी ने अपने बैग से कुछ निकाला . नजर पड़ी तो जुबान गीली हो गई . कुछ लजीज व्यंजन दिख रहा था . जाने क्यू मुझे शिवानी की "सती"कहानी याद आई .उन्होंने शायद ताड़ लिया हो या मेरे चेहरे पर लिखा हो की मुझे भूख लग रही है. ऑफर मिल गया और मैंने लपक भी लिया। सूरज वाली उँगलियों की पाक कला में भी आत्मविश्वास झलक रहा था .

. कानपुर से कोलकाता की यात्रा को समाप्त हुए १७ घंटे होने वाले है लेकिन अभी भी हैंगओवर चल रहा है .रात्रि के भोजनापरांत निनी और टिमटिम खेलने के मोड में आ गयी और फिर उन्होंने प्रापर प्लेस के स्वयंभू मालिक यानि मुझे द्युत क्रीडा(ताश के पत्ते ) में शामिल होने को मजबूर किया . मै सोच रहा था की मनुष्य की हर यात्रा इतनी सुखद होती अगर उसके जीवन में कोहासा नहीं होता . १० बजने को थे , अटेंडेंट महोदय ने बताया की ट्रेन २ बजे के पास कोलकाता पहुचेगी. आँखों में नींद तो नहीं थी या शायद वो बंद नहीं होना चाहती थी लेकिन रात भर जागरण न करना पड़े , इस डर से सोते सूरज को शुभरात्रि बोलते हुए हम निद्रा की आगोश में चले गए .ये पता था की टिमटिम , निनी और उनकी मम्मा कोलकाता से पहले आसनसोल में उतर जायेंगे. भीनी भीनी यादे अब मेरी संपत्ति है .


Sunday, August 4, 2013

बधशाला -13

महापुरुष जो भी जब आया , जग को समझाने वाला 
निष्ठुर जग ने , उसे न जाने , किस किस विपदा में डाला
अपनी अपनी कह कर कितने , चले जायेंगे ! चले गए 
बनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.


कपडे रंग डाले तो क्या है, दिल तो है तेरा काला
बैठ जनाने घाट जपे क्या , राम नाम की तू माला 
छोड़ चुका घर बार अरे ! , तो फिर कैसे चेला चेली 
हाय गंग के तीर खोल दी , राम नाम की बधशाला 


आग लगा दे जटा जूट में ,फेंक कमंडल मृग छाला
जीता जल जा ! कर्मवीर हो ,कर्मयोग में मतवाला
इससे बढ़कर तपोभूमि क्या , तुझे मिलेगी दुनिया में
खाक रमाले, रम जाएगी , रोम रोम में बधशाला .

Wednesday, July 31, 2013

बधशाला -12

इसको कहते है ! पत्थर दिल नहीं एक आंसू ढाला
कर्मयोग में ऐसा ही , बन जाता कर्मठ मतवाला
मोरध्वज के अंतिम धर्म की , उपमा मिलनी महा कठिन
मात- पिता निज सुत की खोले. हर्षित होकर बधशाला



बोला सुत को बांध खंभ से , हिरनकश्यप मतवाला
बता कहाँ भगवान छिपा है , कर बैठा क्या मुंह काला
कहा भक्त ने असुर निकंदन , आओ काटो मम बंधन
प्रकट तपोबल तभी हुआ, खोली पशुबल की बधशाला



गया चोर की तरह भीरु ने , कर्म कलंकित कर डाला
अमर हुआ तो क्या? माथे का, , घाव नहीं भरने वाला
अरे निकर अश्व्स्थामा क्यों , धर्म युद्ध बदनाम किया
द्रोपदी के सुत सोये सुख मय,. नींद खोल दी बधशाला

Thursday, July 11, 2013

बधशाला -11


किस का मुंह पकड़ा जाता है , जो चाहा सो कह डाला
दिल पर रख के हाथ जरा तो , सोचे कोई दिलवाला 
जिसे समझते जुल्म ! यही है. मूल मंत्र आजादी का 
रूह जिस्म में कैद , उसे , आजाद कराती बधशाला

जीवन को आदर्श बनाये , विश्व प्रेम का पी प्याला 
हिम्मते मर्द  मदद ख़ुदा की ,सदा गान करने वाला 
ताल ठोक चढ़ जाये जो . अमर ध्येय की सीढ़ी पर 
ऐसे ही वीरों का स्वागत , करती मेरी बधशाला 

परहित जो पीड़ा सहता है, होता कोई दिलवाला 
है आनंद उसी में उसको. जीवन सुखद बना डाला
जग में जितने हुए सुधारक , अब है या आगे होंगे 
चले धार पर तब सुधार का , पाठ पढ़ाती बधशाला .

Wednesday, July 10, 2013

बधशाला -10

यह कुटुंब, धन, धाम कहाँ है , अरे साथ जाने वाला
जिसके पीछे तूने पागल , क्या अनर्थ न कर डाला
नित्य देखता है तू फिर भी , जान बूझकर फंसता है
"जग जाने " पर ही यह जग है , सो जाने पर बधशाला.



जितना ऊँचा उठना चाहे , उठ जाये उठने वाला
नभ चुम्बी इन प्रासादों को , अंत गर्त में ही डाला
जहाँ हिमालय आज खड़ा है , वहां सिधु लहराता था
लेती है जब करवट धरती, खुल जाती है बधशाला 



खिसक हिमालय पड़े सिन्धु में , लग जाये भीषण ज्वाला
गिरे ! टूट नक्षत्र भूमि नभ , टुकड़े टुकड़े कर डाला
अरे कभी मरघट में जाकर , सुना नहीं प्रलयंकर गान
ब्रम्ह सत्य है ! और सत्य है , विश्व नहीं, ये बधशाला

Monday, July 8, 2013

बधशाला -9

हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य की , भड़क उठी सहसा ज्वाला
उसे बुझाने की हित उसने , खून पसीना कर डाला
आँक सके क्या फिर भी कीमत , मजहब के अंधे व्यापारी
कानपुर बन गया विधाता !, गणेश शंकर की बधशाला

जा प्रयाग में कुम्भ त्रिवेणी , नहाता है क्या ? मतवाला
धर्म कर्म सब अरे ! वृथा है , जब तेरा है दिल काला
पहले जा अल्फ्रेड पार्क में , होगा तीरथ तभी सफल
खोल गया "आजाद " दिलजला . आजादी हित बधशाला

रोशन सा दिलजला कौन है, लहरी सा विषधर काला
दीवाना "अश्फाक" बनादे , सबको "बिस्मिल" मतवाला
फांसी के तख्ते पर ! कीमत, आज़ादी की आँक गए
महा कृतघ्नी ! भूल गए जो , उन वीरों की बधशाला

Friday, July 5, 2013

बधशाला -8

देश धर्म को छोड़ ! खोलता , कोई पागल मधुशाला
भूल गया अपने को यह क्या,जान सकेगा मतवाला
है कोई! देखेगा दिल , दिलवाला उन दिलवालों का
शीश चढ़ाकर अरे जिन्होंने , अमर बनाई  बधशाला

क्या ?जीवन भर लिए फिरेगा , दर दर पर खाली प्याला
तेरी तृष्णा ! नहीं मिटेगी , कितनी ही पीले हाला
अरे शराबी ! बांध कफ़न सिर, मेरे पीछे पीछे चल .
भूल जायेगा मधुशाला को , अगर देख ली बधशाला

गला घोट दे मधुबाला का,चूर चूर कर दे प्याला
तली तोड़ दे मधुघट की पागल ,बह जाये सारी हाला
कान पकड़ के तौबा कर ले , परम पिता से मांग क्षमा
तुझे सूझती मधुशाला , खुल रही देश में बधशाला

सुरा ! शराबी का जीवन है , मेरा जीवन है ज्वाला
उसकी प्यारी मधुशाला है , मेरी आश कृषक -बाला
वह देता है निशा निमंत्रण , उषा निमंत्रण मै देता
झूम रहा है वह मधुशाला में , घूम रहा मै बधशाला

Saturday, April 20, 2013

बधशाला -7

तेरे कर्मो ही ने ! तुझको , इतनी आफत में डाला
मैंने माना रहा न कोई , तेरा हरदम दिल काला
पेशानी पर शिकन न लाना , और न करना कोई गम 
दुनिया जिसको ठुकराती है, गले लगाती बधशाला

राग रंग में सभी मस्त है , कभी ठेठ शाही आला 
कभी निराशा है जीवन में , कभी जला है दिल वाला 
उछल कूद संसार सिन्धु में , क्यों तू गोते खाता है 
एक बार में पार लगा , देती है उनकी बधशाला 

देख देख कर फूल रहा है , माया में दिल का काला
तेरा ये सब कुटुंब कबीला , नहीं काम आने वाला
मोह त्याग ! है सबको मरना , कर्म वीर ! गायी गीता
खोल गया अर्जुन कुटुंब की , कुरुक्षेत्र में बधशाला

चूस चूस कर खून गरीबों , का यह भवन बना डाला
बड़े गर्व से क्या गद्दी पर, मूंछ मरोड़े मतवाला
कभी न सोचा आँख मिचैगी , ठाट बाट रह जायेगा
जरा देर के सुख को तूने , खोली कितनी बधसाला


तेरा इनका जिस्म एक सा ,रंग रूप भी है आला 
यह भी बेटे उसी पिता के , है जिसने तुझको पाला
एक बाप की संताने क्या , नहीं प्रेम से रहती है 
मिलो गले से और खोल दो . छूत छात की बधशाला 

धर्म नहीं है ! अरे बर्फ है , छूने से गलने वाला
नहीं धर्म वह चीज़ जला दे , छूते ही जिसको ज्वाला
इंसानों को इंसानों से , घृणा हुई ये कैसा धर्म
अरे अधर्मी ! क्यों न खोलता , हठ धर्मी की बधशाला

Wednesday, March 20, 2013

बधशाला -6

 बोल कौन था पथ भ्रष्टो को , सत पथ पर लाने वाला
मानवता के लिए प्रेम से ,पिया हलाहल का प्याला
हुआ सिकंदर और अरस्तु , अफलातूं  लुकमान  तो क्या
अमर वीर सुकरात तुम्हारी , अमर रहेगी बधशाला

यहाँ न कोई हिंसा करना , लौट जाय लड़ने वाला
महादेव भगवान करेंगे , आप शत्रु का मुंह काला
हुए अन्धविश्वासी कायर , होना था सो वही हुआ
सोमनाथ में खोल गया , महमूद गजनवी बधशाला

राज पाट को त्याग वचन निज , अंत समय तक था पाला
पुत्र ,प्रिया को बेच बना खुद , मरघट का रखवाला
कर्म वीर कर्तव्य निभाया , विपदा से कब मुंह मोड़ा
हरिश्चन्द्र के सम असत्य की, किसने खोली बधशाला

यज्ञ निमंत्रण दिया न शिव को ,रहा दक्ष का उर काला
सती सह न सकी अपमान , उठी उनके उर में ज्वाला
बिना बुलाये कभी किसी का , कहाँ हुआ सम्मान भला
पिता यज्ञ में शैल सुता ने , अपनी खोली बधशाला

प्यासा था वनवीर खून का , उदयसिंह के मतवाला
तूने स्वामी सुत रक्षा हित , अपना सुत मरवा डाला
आंसू निकला नहीं एक भी , निकली मुख से हाय कहाँ
अमर रहेगी पन्ना मां की , वीर -भूमि में बधशाला

Sunday, March 3, 2013

बधशाला -5



ऊपर के  लिंक को क्लिक करके आप बधशाला का शस्वर पाठ  सुन सकते है.




भीष्म पितामह सा व्रत धारी, था दिलेर वह दिलवाला 
डाली आज़ादी ने जिसके , गले में खूब विजयमाला 
पर -वाना बनकर दीवाना, हा ! अनंत की ओर उड़ा
अरे दैव ! निर्दयी खोल दी , क्या सुभाष की बधशाला


इधर उठा अफगान उधर , बंगाल मस्त था मतवाला 
कश्मीर से कन्याकुमारी , तक फैली जीवन की ज्वाला 
बालक. बूढ़े, युवा, युवतियां , बने देश के दीवाने 
अरे गुलामी की खोली थी , हमने जिसदिन बधशाला


"करो मरो" के मूलमंत्र की , जाग उठी जिस दम ज्वाला
सोता शावक जाग उठा था , तब नींद से मतवाला
बांध कफ़न सर से दीवाने , करने को बलिदान चले
अट्टहास करती रणचंडी , देख देख कर बधशाला 


कुछ दिन तक तो दुनिया से , इसे अलग था कर डाला
अरे ! जहाँ "चित्तू पांडे" का ,रहा खूब शासन आला
कौन भूल जायेगा ! बोलो, बलिया का बलिदान अमर
बम बरसाकर अंग्रेजों ने , जहाँ बनाई बधशाला .




Friday, February 22, 2013

बधशाला-4

सुनकर जिसका नाम ! फिरंगी पर पड़ जाता था पाला
एक लालची ने धोखा से , उसको बंधन में डाला
फांसी पर चढ़ गया ! अमर, हो गया तात्या मरदाना
पूर्णाहुति बन गई ग़दर की , वीर तुम्हारी बधशाला

गीता गीता कहे ! न कहता , त्यागी त्यागी मतवाला
लिप्त हुआ माया में भूला , अपने को भोला भाला
गीता से ! अमरत्व बरसता है , फांसी के तख्ते पर
खुदी छोड़कर कभी न देखी, खुदीराम की बधशाला

नीच "रैंड" का अवसर पाकर , वीरों ने बध कर डाला
मरने से कब कहाँ डरा है , अरे अमर होने वाला
फांसी पर चढ़ गए झूमते , एक साथ तीनो भाई
वे चापेकर बंधु की अबतक , गुण गाती है बधशाला

लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली में ,तूने ही था बम डाला
चला गया जापान ,आँख में , धूल झोंककर दिलवाला
"रास विहारी बोस" तुम्हारे , सब प्रयत्न हो गए सफल
अपनी आँखों देख गए तुम , अंग्रेजों की बधशाला.

माता ! तुमसे एक शर्त पर , तेरा सुत मिलने वाला
मुख देखूंगा नहीं ! देखकर , मुझे अगर आंसू डाला
हंसी ख़ुशी से मिल माता से , फिर सत्येन्द्र चढ़ा फाँसी
वह बडभागिन हँसते हँसते , देख रही थी सुत बधशाला .

कायर डायर का हमको , याद है कारनामा काला
नहीं जुल्म की अंतिम सीमा , बना तीर्थ जलियांवाला
पिंडदान करने कुटुंब का , उठो ! सभी पंजाब चलो
नया राष्ट्र निर्माण करेगी , उन वीरों की बधशाला

Thursday, January 17, 2013

बधशाला-3



आस्तीन में सांप छिपा तब , क्या करता करने वाला
बिठा पालकी में धोखॆ से , उसे निहत्था कर डाला
रहा मांगता ! अंत समय तक , मिली नहीं तलवार उसे
कांप उठी थी निर्दयता भी , लख "टीपू " की बधशाला



कारतूस जब गाय सूअर की , चर्बी वाला दे डाला
भड़क उठे ! भारत के सैनिक , अरे विधर्मी कर डाला
मंगलपांडे नहीं सह सका , ह्युसन का संहार किया
फिर सत्तावन की ज्वाला , बन गई भयंकर बधशाला



दत्तक पुत्र प्रथा को जब , डलहौजी ने रद कर डाला
था कितने ही राजाओं का, वंश नाश होने वाला
जितनी थी संतानहीन , रियासतों से सर्वस छीना
ब्रिटिश छत्र में राज मिलाया , बना राज्य की बधशाला



हुआ ग्वालियर विजय, सिंधिया ,भाग गया दिल का काला
डूब गया फिर रास रंग में , हाय पेशवा मतवाला
समझाया पर एक न मानी, वीर लक्ष्मीबाई की 
स्वतंत्रता की हृदयहीन , बन गए स्वयं ही बधशाला

लगी हाथ में गोली !उसने , हाथ कलम ही कर डाला
फेंक दिया गंगा में सहसा , बोल उठा जय मतवाला 
अस्सी वर्ष का बूढ़ा होगा , कौन कुंवरसिंह सा नाहर
जिधर उठाई आंख उधर बन , गई पलक में बधशाला 

है कोई हरदयाल सरीखा , आजादी का मतवाला 
हो सशस्त्र विद्रोह लगी थी , यही एक उर में ज्वाला 
इसी ध्येय पर तूने अपना , तन मन धन सब वार दिया 
तेरे ! ही पीछे जीवन भर , रही घुमती बधशाला