Tuesday, May 22, 2012

मेघ और हम

बरस गए मेघ, रज कण में
तृण  की पुलकावली भर

तुहिन कणों से उसके ,
 अभिसिंचित हो उठे तरुवर

लिख कवित्त,विरुदावली गाते
लेखनी श्रेष्ठ कविवर





पादप, विटपि, विरल विजन में,
भीग रहे नख -सर

  पा प्रेम सुधा को  अंक में ,
स्वनाम धन्य हो रहे सरोवर

कृतार्थ भाव मानती धरा,
खग कुल -कुल  गाते  सस्वर





अलि गुंजत है अमलतास पर ,
ढूंढ़ रहे सुमधुर पराग

आली निरखत है निज प्रिय को,
भरे नयन अतुल अनुराग

प्रणयातुर विहग-कीट उल्लासित,
अविचल  गाते प्रेम राग 




कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
 मेघो से कब सीखेंगे

ऊपर उठकर  निज स्वार्थ से
युग बृक्ष को कब सीचेंगे

शत योजन आच्छादित  मेघो पर
कभी तो ये  मन रीझेंगे .

Saturday, May 12, 2012

माँ

 माँ को याद करने का कोई एक दिन, ये हमारी संकृति का अंग नहीं है . हम तो अपनी माँ को प्रतिदिन, प्रतिक्षण याद करते है . पाश्चात्य जगत में भावनाओ के सामयिक क्षरण , अभिकेंद्रित होते परिवार में शायद माँ शब्द वर्ष में एक बार याद करने लायक हो गया है .. माँ , वात्सल्य  , त्याग ,और स्नेह का समुद्र है . मातृ देवो भव हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है .इश्वर को भी सर्वप्रथम  त्वमेव माता ही कहा गया है . ये सच है की इस कालखंड में तमाम दुश्वारियों के बाद भी माँ का ममत्व अपनी संतान को पल्लवित होते हुए ही देखना चाहती है . ये सच है पूत कपूत सुने ,पर नहीं सुनी कुमाता


.माता के ओ आंसू कण
अमित वेदनाओ की माला
ह्रदय-चेतना -हारी हाला
अपमानो की विषम -ज्वाला
करती है जिनमे नर्तन
जो देखा माता के आंसू  कण

सोते प्राणों के आलय में
विस्मृत  गौरव -गान -निलय में
प्रतिपल होते  साहस-लय में
चुभ जाएँ तीखे शर बन
जो देखा माता के आंसू  कण


मुंदी हुई पलके खुल जाएँ
शौर्य-शक्ति हम में घुल जाएँ
मन में त्याग भाव तुल जाएँ
निज बलि दे पोंछे तत्क्षण
अपनी माता के आंसू  कण



Tuesday, May 1, 2012

बनिहारिन





iवो खेत में मसूर काटे
पैर में बिवाई फाटे
हंसिया ताबड़ तोड़ चलावे 
हथेली में पड़ गई गांठे 

करईल की खांटी  मिटटी 
जरत है अंगार नियर 
कपार से कुचैला सरकत 
मुँह झहाँ के हो गईल पीयर 

जांगर की प्रतिष्ठा में , जाने 
केतना  लेख लिखायल
सुरसती का स्वेद बोले 
घायल की गति जाने घायल

गुदड़ी में लिपटल  नौनिहाल
राइ क ठूंठ पर वितान तले 
घाम से खेले छुपन छुपाई
कीचराइल  आँख  में सपना  पले

श्रम  दिवस क आज खूब शोर बा
एकर खाली नाम सुनल है
सुरसती  पीड़ा में भिगल पोर-पोर बा
बनिहारिन त  नाम पडल है






कपार--सिर, नियर --जैसे , झहाँ --झुलस कर , जांगर --श्रम , राइ--सरसों की एक प्रजाति , घाम --धूप,  बनिहारिन -महिला श्रमिक