Saturday, February 26, 2011

मै लौट आया

इन दिनों कुछ मौसम बदला है
कलतक चुभा करती थीं ये खिड़कियाँ
अब नज़रें पीछा करतीं हैं
मुक्त गगन के उड़ते पंछी
इन दिनों कुछ तो बदला है
सुगंध हवाओ में रची बसी
खिड़की की  बंद कगारों से
टकराकर एहसास भी लौट जाते थे
सुकून कही किसी कोने में दुबककर
अतृप्त से मन में खो जाते थे
निरभ्र आकाश अहर्निश
मेरे खालीपन का द्योतक था
इस लौकिक काया  में कुछ भी
अब्दों से घटा ना कुछ रोचक था
सजल नैनो में तिमिर था  छाया
स्पंदित होती थी  व्यथा
मन के अरण्य में विकलता
संज्ञाशून्य विचरती थी  यथा
कल हमने खिड़की के पट खोले
विभ्रम की घडिया अतीत हुई
कलरव इस  सांध्य मलय का
मलयानिल मकरंद घोले
अब पट रजनी के भाते है
प्रेम- सुतीर्थ स्नान सुहाता है
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
जीवन वर्त्ति सा भाता है ..

Wednesday, February 16, 2011

सीख ममता की .

आजकल कुछ व्यावसायिक व्यस्तता इतनी बढ़ गयी है की कुछ सोचने और लिखने का समय नहीं निकाल पा रहा हूँ. उम्मीद है आपका लोगों का अनुराग बना रहेगा . अभी कुछ दिन पहले मेरी माताश्री जो हिंदी में परास्नातक और डोक्टोरेट है उनका एक पत्र मेरे हाथ लगा जो उन्होंने मेरी अग्रजा को लिखा था जब वो उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयी . उनकी लिखी वो पंक्तिया आप सबसे बांटकर मुझे अच्छा महसूस हो  रहा है .उम्मीद है आप गुनीजनो को पसंद आएगी .

अरे अभी तक तुम यही हो ?
यह तो आगे बढ़ने का वक्त है
जहाज में चढ़ने का वक्त है
मत भूलो तुम्हारी शिराओ में मेरा रक्त है

मस्तूल तन चुके है बहती बयार से
सब थक गए है तेरे इंतजार से
मेरा आशीर्वाद तुम स्वीकार करना
जाते जाते मेरी बातें याद रखना

भाव मित्रता का रखना , ना होने देना उसमे अति
सच्चे मित्र पा जाओ तो दिल से रखना वो संगति
हर अनजाने का हाथ थामने में ना समय गवाना
खुद किसी से निष्प्रयोजन ना ही झगड़ जाना

ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
राय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान

मर्यादा में ही रहना, चाहे खाओ घास फूस
जीवन भर अपने प्रति ,अगर तुम सच्ची  रहोगे
कभी किसी से झूठे पन का, बोझा नहीं सहोगे
तुम चाँद सी ही रहोगी , चाहे फाग हो या पूस

 तुम प्रखर हो उदात्त हो,एक हो घणो में
पर एक माँ के ह्रदय से निकली उक्त पंक्तिया
अपनी लाडली से बिछड़ने पर हुई रिक्तियां
शुकून दे सकेगी शायद विछोह के इन क्षणों में