Wednesday, August 10, 2011

पुनर्मिलन

बरस रहे  घन   मेघ ,
चपला चमके उनके उर में
नव नील कुञ्ज झूम रहे,
दादुर चातक गाते सुर में


रिमझिम अविरल अजर फुहारे,
मन में लालसा गोपन भरती
,नव कोपल उग आये अगणित,
दग्ध ह्रदयको  अभिसिचित करती


फूलों का उत्सव घर अनंग  के, 
मादकता है बरस रही
मदिरारुण आँखों से उनकी,
आकांक्षा -तृप्ति है झलक रही


अनंत  यौवन- मधु झरता ,
मधु-राका है उर्ध्वाधर  गामी
पुलकित,आंखे बंद किये ,
रूपरस पीता बन अलि का अनुगामी


कोमल लतिका सी बाँहों का ,
सुरभि लहरी सा शीतल आलिंगन
मदविह्वल कर देता ,
 मृदुल अँगुलियों का स्पर्श -अभिनन्दन


 अनंग के कोमल  पुष्प शरों से ,
विध रहा अकिंचन सा  ये तन
चिर तृष्णा बेचैन हुई ,
मतवाली माया का  अद्भुत सृष्टि मिलन