Wednesday, August 10, 2011

पुनर्मिलन

बरस रहे  घन   मेघ ,
चपला चमके उनके उर में
नव नील कुञ्ज झूम रहे,
दादुर चातक गाते सुर में


रिमझिम अविरल अजर फुहारे,
मन में लालसा गोपन भरती
,नव कोपल उग आये अगणित,
दग्ध ह्रदयको  अभिसिचित करती


फूलों का उत्सव घर अनंग  के, 
मादकता है बरस रही
मदिरारुण आँखों से उनकी,
आकांक्षा -तृप्ति है झलक रही


अनंत  यौवन- मधु झरता ,
मधु-राका है उर्ध्वाधर  गामी
पुलकित,आंखे बंद किये ,
रूपरस पीता बन अलि का अनुगामी


कोमल लतिका सी बाँहों का ,
सुरभि लहरी सा शीतल आलिंगन
मदविह्वल कर देता ,
 मृदुल अँगुलियों का स्पर्श -अभिनन्दन


 अनंग के कोमल  पुष्प शरों से ,
विध रहा अकिंचन सा  ये तन
चिर तृष्णा बेचैन हुई ,
मतवाली माया का  अद्भुत सृष्टि मिलन














35 comments:

  1. bahut sundar likha hai. mujhe to lagata hai ki itani klisht hindi , tumhen hindi ka professor hona chahie tha. shuddha sahitya ka. kuchh gadbad ho gayi.

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  2. अनंग के कोमल पुष्प शरों से ,
    विध रहा अकिंचन सा ये तन
    चिर तृष्णा बेचैन हुई ,
    मतवाली माया का अद्भुत सृष्टि मिलन
    .. nihsandeh adbhut

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  3. इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। आपकी इस कविता के नामाकरण से लेकर उसकी अंतर्वस्तु में निहित अर्थ कविता को एक नया संस्कार देते हैं। आपकी मोहक शैली का ऐसा जबरदस्तग आकर्षण है!
    पुलकित,आंखे बंद किये ,
    रूपरस पीता बन अलि का अनुगामी

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  4. सुंदर भाव लिए प्रभावित करती रचना .....

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  5. शब्दों का खूबसूरत माया जाल !

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  6. भावों को खूबसूरत शब्दों में गूंथा है ..बहुत भाव मयी रचना

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  7. साहित्यिक,अत्यंत भावप्रबल...उत्कृष्ट लेखन है ..!!
    बहुत बधाई इस रचना के लिए..!!

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  8. बहुत उत्कृष्ट!!

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  9. अनंग के कोमल पुष्प शरों से ,
    विध रहा अकिंचन सा ये तन
    चिर तृष्णा बेचैन हुई ,
    मतवाली माया का अद्भुत सृष्टि मिलन

    .... भावों को सुन्दर शब्दों में सँजोये एक उत्क्रष्ट प्रस्तुति...

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  10. वर्षा की फुहारों में फैली प्रकृति की चंचल चितवन मन मोह जाती है। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।

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  11. कोमल लतिका सी बाँहों का ,
    सुरभि लहरी सा शीतल आलिंगन
    मदविह्वल कर देता ,
    मृदुल अँगुलियों का स्पर्श -अभिनन्दन

    सुंदर शब्दों के साथ अभिव्यक्ति....

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  12. मदविह्वल कर देता
    मृदुल अँगुलियों के शब्दों का जादू ....

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  13. After a long gap , i got to read this beautiful creation of yours . Badhaii !

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  14. रिमझिम अविरल अजर फुहारे,
    मन में लालसा गोपन भरती
    ,नव कोपल उग आये अगणित,
    दग्ध ह्रदयको अभिसिचित करती

    वाह सुंदर ...बहुत सुंदर भाव ....

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  15. पुनर्मिलन की सुन्दर काव्यात्मक व्याख्या...बहुत सुन्दर रचना....

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  16. बधाई जी! बधाई!
    पुनर्मिलन की और इस शानदार कविता के प्रस्फ़ुटन की बधाई! :)

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  17. कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!

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  18. बहुत सुंदर। यह मौसम ही जालिम है।

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  19. कोमल लतिका सी बाँहों का,
    सुरभि लहरी सा शीतल आलिंगन
    मदविह्वल कर देता,
    मृदुल अँगुलियों का स्पर्श-अभिनन्दन

    भावों और शब्दों का सुंदर संयोजन।

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  20. शिल्प, भाव, शब्द चित्रण और उत्कृष्ट साहित्यिक रचना है ... मौसम को बूंदों की तरह समेटा है ... अति उत्तम ...

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  21. बेहद उत्कृष्ट रचना है यह...

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  22. ati uttam rachna ,
    अनंग के कोमल पुष्प शरों से ,
    विध रहा अकिंचन सा ये तन
    चिर तृष्णा बेचैन हुई ,
    मतवाली माया का अद्भुत सृष्टि मिलन
    swatantrata divas ki badhai .

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  23. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  24. संभवतः मैं अपनी भावनाओं को सही शब्द न दे पाऊं . बस ..आपको पढ़ती हूँ तो बहुत ख़ुशी होती है.

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  25. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  26. aashish ji
    bahut hi sundarr aur shandaar rachna shbdo ka taal-mel itna prabhav shali hai ki padh kar wah -wah man bol utha.
    bahut hiprabhavpurn v khoob surat post
    bahut bahut badhai
    dhanyvaad
    poonam

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  27. आशीष जी अब आप मेरे लिए क्षणिकाएं भी लिखिए .....
    अपनी १० , १२ क्षणिकाएं भेज दीजिये अपने संक्षिप्त परिचय व तस्वीर के साथ .....

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  28. आशीष जी,
    Behtrin rachna, sach men.

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  29. आशीष जी ,बहुत दिनों बाद इतनी सुरभित शब्दों का प्रयोग देखा .... आनंद आ गया ,शुभकामनायें !

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  30. हिन्दी के तत्सम शब्दों का यह अभिनव प्रयोग मुझे कितना विभोर,कितना आह्लादित करता है,मैं शब्दों में नहीं बता सकती...

    भाव और शिल्प दोनों ही हृदयहारी हैं आपके इस रचना के...

    बहुत बहुत आभार इस सुन्दर रचना के लिए....

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  31. पहली मर्तबा आया हूँ आपके इस संकलन पर किन्तु ऐसा लगता है की किसी सम्मोहन से जकड गया हूँ...बहुत उत्कृष्ट रचना....

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  32. अति सुन्दर काव्य ....

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