Thursday, October 6, 2011

ओ दशकन्धर

आज फिर लगाया हमने, दशानन के पुतले में अग्नि 
नयन हुए हमारे पुलकित, सुनाई दी उच्च शंख ध्वनि 
खुश हुए, कि नहीं वो, अमर जैसे अम्बर और अवनि

उदभट विद्वता और  बाहुबल, छल कपट  और घमंड 
पुलस्त्य कुल में जन्म लेकर भी , जो बन गया  उदंड 
श्रुति, वेद, ज्ञाता, परम पंडित, और  शिव भक्त प्रचंड 


निज नाभि अमृत होकर भी, जो  अमरत्व न पा सका 
राम अनुज को नीति बता, भी  नीतिवान न कहला सका 
स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका .


हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध  की खातिर 
रोज सीता हरण होता है, अगण्य दसकंधर से हम गए घिर 
मुखाग्नि उसको देता, बन मुख्य अतिथि, नव-रावण शातिर

कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने? 
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।


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30 comments:

  1. बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व और बुराई के रावण का प्रतीक अब हमसे जो सवाल कर रहा है वह सुरसा के मुंह की तरह विशाल है, पर हमारे पास कोई सकारात्मक जवाब नहीं है। इतने सारे रावण और असुर हमारे समाज में भरे पड़े हैं कि हम इन रस्म अदाइगियों से कभी ऊपर उठकर उनके दहन के बारे में भी तो सोचे।
    बहुत अच्छी और सामयिक रचना।

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  2. हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर " अक्षम्य अपराध ? सीता का हरण ? या सीता की सुरक्षा ..... अशोक वाटिका में सीता सुरक्षित रहीं , .... पर हम सिर्फ रावण को गलत बताते हैं .....
    रचना बहुत अच्छी है, पर चिंतन अपेक्षित है !

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  3. मन में बसे टनों रावण को कौन जलायेगा।

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  4. Hmmmm....कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
    तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
    हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
    Baat to bilkul sahee hai!

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  5. हर साल हम एक रावण जलाते हैं और न जाने कितने ही जिन्दा रह जाते हैं.यह रावण दहन कभी खतम होने वाला नहीं.जब तक अपने अंदर के रावण का दहन न हो.
    बढ़िया रचना

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  6. विचारणीय भाव लिए बेहतरीन रचना ...

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  7. इस विषय में कविता लिखने बैठा तो मेरे मन में भी यही सब भाव जगे..फिर न जाने क्या हुआ कि नहीं लिख पाया।
    आपने लिखा आपको बधाई।

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  8. विजयादशमी पर आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.

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  9. लकीर पीट-पीट कर फ़कीर होना हमारी प्रवृति हो गयी है..

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  10. निज नाभि अमृत होकर भी, जो अमरत्व न पा सका
    राम अनुज को नीति बता, भी नीतिवान न कहला सका
    स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका .

    avismarneeya, manmohak prastuti.

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  11. रावण सबके अंतस्थल मे है उसे निकाल फेकना ही असली विजय दशमी है

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  12. man ka ravan hi marna hai ...
    sarthak sandesh ....

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  13. कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
    तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
    हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।



    यथार्थ का काव्यमय सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...

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  14. क्या जलवेदार कविता है। जय हो!

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  15. man mei base or samaj mei khule ghum rahe ravan ko koun marega????????????

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  16. कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
    तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने ?

    कविता का संदेश विचारणीय है।

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  17. "आज रावण को रावण जलाते ,
    बुराई पर वो विजय पाते"

    बहुत कुछ सोचने के लिये है , मगर अफसोस हम बुराइयों पर पर्दा डाल कर बस रावण के प्रतीक को भस्म करके अपनी झूठी विजय पर ही खुश हो लेते है ।

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  18. कुछ ज्वलन्त प्रश्नों को पूछती बेहद खूबसूरत कविता ......

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  19. सच हियो रस्म निभाने की बजाये अगर दिल से उसे जलाया होता तो बात ही क्या होती ... प्रश्न उठाती रचना ...

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  20. रचना की प्रतीक्षा है.

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  21. बढ़िया रचना ....
    शुभकामनायें आपको !

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  22. स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका ....

    प्रेम रोग ही ऐसा है, ......:))

    haan रस्म और अग्नि स्त्रीलिंग shbd हैं ....

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  23. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
    ***************************************************

    "आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

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  24. सही सवाल उठाया है रावण के पुतले ने, आपके शब्दों में।

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  25. आशीष जी नमस्कार ..रचना की प्रतीक्षा तो है ही ..
    आपके कुशल क्षेम की प्रभु से प्रार्थना है और आपको सपरिवार नव वर्ष की शुभकामनायें...

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  26. बहुत सुन्दर रचना , सादर .

    नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.

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  27. bahut sundar sandesh deti Kavita ..bahut sundar ... Navvarsh par shubhkaamnayen..

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  28. हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर
    रोज सीता हरण होता है, अगण्य दसकंधर से हम गए घिर
    मुखाग्नि उसको देता, बन मुख्य अतिथि, नव-रावण शातिर
    यही यथार्थ है ,भारतीय जन जीवन का सार है .

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  29. कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
    तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
    हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।

    बहुत सुंदर सत्य पर आधारित कविता पढ़वाने का धन्यवाद !!

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