Sunday, September 26, 2010

गेहूं बनाम गुलाब

बगिया में है खिल रहे , शुभ्र   धवल गुलाब
उर्ध्वाधर ग्रीवा,चन्द्रकिरण में नहाये हुए

भ्रमर गीत  गुनगुना रहे , मुदित मन रहा नाच
आती सोंधी सुगंध छन के  , है घनदल छाये हुए .

मधुकर का मिलन गीत ,  पिक की विरह तान
मंदिर की दिव्य वाणी   , मस्जिद की   अजान

कलियों की चंचल  चितवन , पुष्प  का मदन बान
लतिका का कोमल गात, देख रहा अम्बर विहान

कोयल की  मधुर कूक ,क्या क्षुधा हरण  कर सकती है ?
कर्णप्रिय  भ्रमर गीत , माली का  पोषण कर सकती है ?

सुमनों के सौरभ हार, सजा सकते है  पल्लव केश
बिखरा सकते है खुशबू, बन सकते है देवो का अभिषेक

पर क्या ये सजा सकते है , दीन- हीन आँखों में ख्वाब ?
हमे जरुरत है किसकी ज्यादा , सोचिये गेंहू बनाम गुलाब?

16 comments:

  1. प्रकृति का शाश्वत द्वन्द। सुन्दर काव्य प्रगटन।

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  2. प्रकृति का सुन्दर चित्रण और उससे भी ज्यादा एक गंभीर प्रश्न ...

    गहन चिंतन के साथ उत्कृष्ट रचना ...

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  3. गेहूं जीवित रहने के लिए जरूरी है। और गुलाब जीवन जीने के लिए।

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  4. तुम्हारी इस साहित्यिक भाषा में उलझ कर रह जाते हैं, लेकिन भाव तो समझ ही सकते हैं. सार सिर्फ एक पंक्ति में समाहित है. ये सारी सुन्दरता और प्रकृति की छटा भरे पेट वालों को समझ आती है. किसान को खेत में खड़े गेहूं की बालियों में जो सौंदर्य दिखता है उसका वर्णन उससे अधिक अच्छा कौन कर सकता है?

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  5. @प्रवीण जी
    इस शाश्वत द्वन्द में झाँकने की कोशिश की है मैंने , आपको अच्छी लगी. आभार .
    @गजेन्द्र जी
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका
    @संगीता जी
    ऐसे ही प्रेरित करते रहे .
    @दिव्या जी
    सत्य वचन
    @रेखा जी
    आभार आपका .

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  6. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साहित्यिक सौंदर्य भी निखर कर आया है कविता में ,और एक गंभीर प्रश्न भी .
    कितना अच्छा होता गेहूं बनाम गुलाब न होकर
    गेहूं और गुलाब होता .
    एक खूबसूरत संतुलन....काश ..

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति , गहरी सोच.

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  8. बहुत ही बेहतरीन चित्रण किया है....

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  9. कविता ने प्रभावित किया ...शब्दों और भावों का विलक्षण संयोजन ...बधाई।

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  10. प्रकृति चित्रण के साथ एक सुंदर रचना

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  11. एक बात तो है... मेरा मन कर रहा है... कि आपको गुरु बना कर कुछ सीख लूं... क्या लिखते हैं ... वोकैबब्युलरी कितनी स्ट्रोंग है आपकी... वो भी कितनी फिनिशिंग है...आपकी रचनाओं में... ऐसा लग रहा है.. कि किसी तराश्कार ने किसी कलाकृति को तराशा है...

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  12. क्या बात है आपकी वाह
    बहुत सुन्दर

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  13. @शिखा जी
    संतुलन जरुरी है ,लेकिन दिख नहीं रहा है आक के समाज में .
    @सुशील जी
    धन्यवाद
    @समीर जी
    आप आये बहार आयी .
    @महेंद्र जी
    आपको पसंद आयी कविता , मै गदगद हुआ .
    @वीणा जी
    धन्यवाद.
    @महफूज जी
    आपने अतिश्योक्ति लिख दी है भाई , मै एक अदना सा इन्सान हूँ जो बस अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए छटपटा रहा है ,
    @दीप्ति जी
    @शुक्रिया पधारने के लिए .

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  14. मधुकर का मिलन गीत, पिक की विरह तान
    मंदिर की दिव्य वाणी, मस्जिद की अजान ...

    सुंदर शब्द संयोजन .... बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं ,.....

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  15. मैंने सोचा की आज भी कुछ लिखा होगा आपने...

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  16. गेंहूँ विवशता है पर गुलाब की अति आवश्यकता है .

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