
त्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल
ना जाने कितने अश्वसेन, कितने विश्रुत विषधर भुजंग
बढ़ा रहे शोभा कुटिल ह्रदय की, जैसे वो उनका हो निषंग
ताक में रहता है वो , कब छिड़े महाभारत जैसा कोई प्रसंग
है जरुरत इस धरा को , जन्मेजय के पुनः अवतरण का
पाने को, गरल से छुटकारा,है जरुरत अमिय के वरण का
या फिर जरुरत है हमे , हम अनुसरण करे महान करण का
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
लाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कर हन्त, कुटिल विषदंत का , जीवन आगे बढ़ सकता है.
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का