आज फिर लगाया हमने, दशानन के पुतले में अग्नि
नयन हुए हमारे पुलकित, सुनाई दी उच्च शंख ध्वनि
खुश हुए, कि नहीं वो, अमर जैसे अम्बर और अवनि
उदभट विद्वता और बाहुबल, छल कपट और घमंड
पुलस्त्य कुल में जन्म लेकर भी , जो बन गया उदंड
श्रुति, वेद, ज्ञाता, परम पंडित, और शिव भक्त प्रचंड
निज नाभि अमृत होकर भी, जो अमरत्व न पा सका
राम अनुज को नीति बता, भी नीतिवान न कहला सका
स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका .
हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर
रोज सीता हरण होता है, अगण्य दसकंधर से हम गए घिर
मुखाग्नि उसको देता, बन मुख्य अतिथि, नव-रावण शातिर
कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
नयन हुए हमारे पुलकित, सुनाई दी उच्च शंख ध्वनि
खुश हुए, कि नहीं वो, अमर जैसे अम्बर और अवनि
उदभट विद्वता और बाहुबल, छल कपट और घमंड
पुलस्त्य कुल में जन्म लेकर भी , जो बन गया उदंड
श्रुति, वेद, ज्ञाता, परम पंडित, और शिव भक्त प्रचंड
निज नाभि अमृत होकर भी, जो अमरत्व न पा सका
राम अनुज को नीति बता, भी नीतिवान न कहला सका
स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका .
हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर
रोज सीता हरण होता है, अगण्य दसकंधर से हम गए घिर
मुखाग्नि उसको देता, बन मुख्य अतिथि, नव-रावण शातिर
कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
तुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व और बुराई के रावण का प्रतीक अब हमसे जो सवाल कर रहा है वह सुरसा के मुंह की तरह विशाल है, पर हमारे पास कोई सकारात्मक जवाब नहीं है। इतने सारे रावण और असुर हमारे समाज में भरे पड़े हैं कि हम इन रस्म अदाइगियों से कभी ऊपर उठकर उनके दहन के बारे में भी तो सोचे।
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सामयिक रचना।
हर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर " अक्षम्य अपराध ? सीता का हरण ? या सीता की सुरक्षा ..... अशोक वाटिका में सीता सुरक्षित रहीं , .... पर हम सिर्फ रावण को गलत बताते हैं .....
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी है, पर चिंतन अपेक्षित है !
मन में बसे टनों रावण को कौन जलायेगा।
ReplyDeleteHmmmm....कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
ReplyDeleteतुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
Baat to bilkul sahee hai!
हर साल हम एक रावण जलाते हैं और न जाने कितने ही जिन्दा रह जाते हैं.यह रावण दहन कभी खतम होने वाला नहीं.जब तक अपने अंदर के रावण का दहन न हो.
ReplyDeleteबढ़िया रचना
विचारणीय भाव लिए बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteइस विषय में कविता लिखने बैठा तो मेरे मन में भी यही सब भाव जगे..फिर न जाने क्या हुआ कि नहीं लिख पाया।
ReplyDeleteआपने लिखा आपको बधाई।
विजयादशमी पर आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteलकीर पीट-पीट कर फ़कीर होना हमारी प्रवृति हो गयी है..
ReplyDeleteनिज नाभि अमृत होकर भी, जो अमरत्व न पा सका
ReplyDeleteराम अनुज को नीति बता, भी नीतिवान न कहला सका
स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका .
avismarneeya, manmohak prastuti.
रावण सबके अंतस्थल मे है उसे निकाल फेकना ही असली विजय दशमी है
ReplyDeleteman ka ravan hi marna hai ...
ReplyDeletesarthak sandesh ....
कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
ReplyDeleteतुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
यथार्थ का काव्यमय सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
क्या जलवेदार कविता है। जय हो!
ReplyDeleteman mei base or samaj mei khule ghum rahe ravan ko koun marega????????????
ReplyDeleteकह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
ReplyDeleteतुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने ?
कविता का संदेश विचारणीय है।
"आज रावण को रावण जलाते ,
ReplyDeleteबुराई पर वो विजय पाते"
बहुत कुछ सोचने के लिये है , मगर अफसोस हम बुराइयों पर पर्दा डाल कर बस रावण के प्रतीक को भस्म करके अपनी झूठी विजय पर ही खुश हो लेते है ।
कुछ ज्वलन्त प्रश्नों को पूछती बेहद खूबसूरत कविता ......
ReplyDeleteसच हियो रस्म निभाने की बजाये अगर दिल से उसे जलाया होता तो बात ही क्या होती ... प्रश्न उठाती रचना ...
ReplyDeleteरचना की प्रतीक्षा है.
ReplyDeleteबढ़िया रचना ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
स्त्री-हरण अधर्म है, दशानन स्वयं को समझा न सका ....
ReplyDeleteप्रेम रोग ही ऐसा है, ......:))
haan रस्म और अग्नि स्त्रीलिंग shbd हैं ....
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
ReplyDelete***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
सही सवाल उठाया है रावण के पुतले ने, आपके शब्दों में।
ReplyDeleteबढिया है.
ReplyDeleteआशीष जी नमस्कार ..रचना की प्रतीक्षा तो है ही ..
ReplyDeleteआपके कुशल क्षेम की प्रभु से प्रार्थना है और आपको सपरिवार नव वर्ष की शुभकामनायें...
बहुत सुन्दर रचना , सादर .
ReplyDeleteनूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
bahut sundar sandesh deti Kavita ..bahut sundar ... Navvarsh par shubhkaamnayen..
ReplyDeleteहर साल जलाया जाता, एक अक्षम्य अपराध की खातिर
ReplyDeleteरोज सीता हरण होता है, अगण्य दसकंधर से हम गए घिर
मुखाग्नि उसको देता, बन मुख्य अतिथि, नव-रावण शातिर
यही यथार्थ है ,भारतीय जन जीवन का सार है .
कह रहा जलकर रावण, इस पुतले को जलाने से क्या पाया तुमने।
ReplyDeleteतुम्हारे समाज में जो हैं व्याप्त जिन्दा, उन्हें क्या जलाया तुमने?
हर साल जलाते हो, इस बार भी बस वही रस्म निभाया तुमने।
बहुत सुंदर सत्य पर आधारित कविता पढ़वाने का धन्यवाद !!