आज फिर लगायेंगे हम, दशानन के पुतले में अग्नि
नयन होगे हमारे पुलकित, सुनाई देगी शंख ध्वनि
सोच खुश होगे, की नहीं वो ,अमर जैसे अम्बर और अवनि
उदभट विद्वता और बाहुबल, छल कपट और घमंड
पुलस्त्य कुल में जन्म लेकर भी , जो बन गया उदंड
श्रुति, वेद, ज्ञाता , परम पंडित, और शिव भक्त प्रचंड
निज नाभि अमृत होकर भी, जो अमरत्व न पा सका
राम अनुज को नीति बता ,भी नीतिवान न कहला सका
धर्मज्ञ होकर भी पर स्त्री हरण , अधर्म है अपने को समझा न सका .
हर साल जलाया जाता वो , एक अक्षम्य अपराध के खातिर
अब रोज सीता हरण होता है ,अगण्य दसकंधर से गए हम घिर
मुखाग्नि उसको देता , मुख्य अतिथि बनके, नव रावण शातिर
वो कहता मुझ मरे हुए, के पुतले को जलाने से क्या पाओगे
जलाओ जिन्दा रावण को , जिन्हें बहुतायत में तुम पाओगे
नाभि अमृत का रहस्य ढूढो,असफल हुए तो शताब्दियों तक पछ्तावोगे .
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो, अगर ठोकर लगा दें हम तो चशमे फूट जाते हैं.----- शेफ़ा कजगाँवी
Sunday, October 17, 2010
Monday, October 4, 2010
नीड़ का निर्माण
नीड़ का निर्माण दुष्कर ,मत हो तू हतप्राण
बाधा विविध ,तू एकला चल ,है झेलना तुझे कटु बाण
बाधा विविध ,तू एकला चल ,है झेलना तुझे कटु बाण
स्वेद से है तेरे सुशोभित ,पुरुषार्थ की परिभाषा
पाषाण उर से निकले है निर्झर,ऐसी हो अभिलाषा
अपने अंतर्मन की नीरवता को, मत करने दे कुठाराघात
बन उत्कृष्ट तू ,छू ले व्योम ,हो निशा का अंत , आये प्रभात
अवलम्ब बन तू नीड़ का , स्फूर्ति भर , तू गर्व कर
गृह के सजने से पहले , तू बैठ नहीं सकता थक कर
कोई, उपल घात या . चंचला , नहीं झुका सकते तेरे मनोबल को
पथ खुला पड़ा है तेरा , दौड़ सरपट , कर धता बता तू छलबल को
कल जब सूरज निकलेगा , नभ के अपनी प्रदक्षिणा पर
वो प्राण शक्ति लेगा तुमसे , चंदा की किरने होगी न्योछावर
Friday, October 1, 2010
दबंग --अहम् ब्रम्हास्मि
कही दबंग, कही बाहुबलि , कही गैंगस्टर , कही खलीफा
आजकल वो सर्व प्रिय है , सरकार भी देती उनको वजीफा
नवयौवन के उत्साह का , वे है सच्चे पथ प्रदर्शक
प्रखर है उनकी जीवनचर्या, है सम्मानित और आकर्षक
वो हर जगह पूज्यमान है , हो झुमरी तलैया या फिर रोम
कुछ श्वेत वस्त्र को करते सुशोभित , कुछ गाते है हरिओम
तुम, साम दाम दंड भेद , के निपुण उपयोग कर्ता हो
हो कुबेर तुम, विश्वकर्मा भी , सफ़ेद पोशो के भर्ता हो
तुम अमर बेलि , तुम समदर्शी , तुम हो चक्रवर्ती निष्कंटक
तुम ही तो हो प्रेरणा के स्रोत अपने, और राजयोग के भंजक
हे धवल वस्त्र धारक, जीवन संहारक, तुम ही दिव्य आत्मा हो
हे मानव कुल श्रेष्ठ ,स्वयं ही बताओ, कैसे आपका खात्मा हो
आजकल वो सर्व प्रिय है , सरकार भी देती उनको वजीफा
नवयौवन के उत्साह का , वे है सच्चे पथ प्रदर्शक
प्रखर है उनकी जीवनचर्या, है सम्मानित और आकर्षक
वो हर जगह पूज्यमान है , हो झुमरी तलैया या फिर रोम
कुछ श्वेत वस्त्र को करते सुशोभित , कुछ गाते है हरिओम
तुम, साम दाम दंड भेद , के निपुण उपयोग कर्ता हो
हो कुबेर तुम, विश्वकर्मा भी , सफ़ेद पोशो के भर्ता हो
तुम अमर बेलि , तुम समदर्शी , तुम हो चक्रवर्ती निष्कंटक
तुम ही तो हो प्रेरणा के स्रोत अपने, और राजयोग के भंजक
हे धवल वस्त्र धारक, जीवन संहारक, तुम ही दिव्य आत्मा हो
हे मानव कुल श्रेष्ठ ,स्वयं ही बताओ, कैसे आपका खात्मा हो
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