मेरे शव को हाथ लगाये , जिसके कर में छाला
मेरी अर्थी में, घायल जो , हो कन्धा देने वाला
जिसके दिल में आग लगी हो , वही चिता मेरी फूंके
कर्म करे तो बांध कफ़न सर , सीधे जाये बधशाला
गर्म रक्त से ! मेरा तर्पण , हो कोई करने वाला
सहसबाहु का परशुराम ने , जैसे वंश मिटा डाला
तृप्त आत्मा होगी मेरी , कहीं जुल्म का नाम न हो
जहाँ मिले कोई भी जालिम , वहीँ खोल दो बधशाला
जो कुछ समझा मैंने उतना, वीरों का यश लिख डाला
क्षमा करो अपराध ! भूल है , नहीं है मेरा दिल काला
रहे शेष जो उनकी पदरज , निज मस्तक पर धरता हूँ
देश धर्म हित खोल चुके , या देख चुके जो बधशाला