tag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post5696688279853454844..comments2023-10-11T05:05:14.272-07:00Comments on युग दृष्टि: मेघ और हमashishhttp://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-89979588001035415802012-06-14T03:08:29.422-07:002012-06-14T03:08:29.422-07:00अनंत रसों में भी हम अंजुरी भर भी न पाते हैं तो मेघ...अनंत रसों में भी हम अंजुरी भर भी न पाते हैं तो मेघों से सीखना तो दूर की बात है..उत्तम कृति..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-13603844447838039452012-05-27T05:16:44.203-07:002012-05-27T05:16:44.203-07:00प्रशंसनीय कविता। मेघा अब तू बरस जा । बहुत सुंदर । ...प्रशंसनीय कविता। मेघा अब तू बरस जा । बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-41649379334316587752012-05-26T06:49:22.298-07:002012-05-26T06:49:22.298-07:00बड़ी गरमी पड़ रही है। ये मेघ कब बरसेगा?बड़ी गरमी पड़ रही है। ये मेघ कब बरसेगा?मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-28131388323236555902012-05-24T10:31:06.496-07:002012-05-24T10:31:06.496-07:00वाह जी सुंदर रचना सुघड़ शब्दचयनवाह जी सुंदर रचना सुघड़ शब्दचयनKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-77222204720016650652012-05-24T02:36:08.408-07:002012-05-24T02:36:08.408-07:00प्रकृति से सार्थक संदेश देती अद्भुत रचना ...
कलह--...प्रकृति से सार्थक संदेश देती अद्भुत रचना ...<br />कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव <br /> मेघो से कब सीखेंगे <br />ऊपर उठकर निज स्वार्थ से<br />युग बृक्ष को कब सीचेंगे<br />शत योजन आच्छादित मेघो पर <br />कभी तो ये मन रीझेंगे .<br /><br />निज स्वार्थ ही तो नहीं छूटता ....सब उसी को सींचने में लगे रहते हैं ...पावस का सुंदर वर्णनसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-30330491200230353032012-05-23T09:55:29.060-07:002012-05-23T09:55:29.060-07:00अद्भुत भाव व शब्द संचरण, मन मोहते..अद्भुत भाव व शब्द संचरण, मन मोहते..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-10833472359754647072012-05-22T10:26:28.299-07:002012-05-22T10:26:28.299-07:00बहुत सुंदर भाव की कविता लिखी है। जो समझ में आ रहा ...बहुत सुंदर भाव की कविता लिखी है। जो समझ में आ रहा है वह यह कि दु:खों से भरी इस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-62308729938815476532012-05-22T10:23:03.577-07:002012-05-22T10:23:03.577-07:00'कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखे...'कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव<br />मेघो से कब सीखेंगे<br />ऊपर उठकर निज स्वार्थ से<br />युग बृक्ष को कब सीचेंगे'<br />वाह!<br />सटीक प्रश्न उठाती उत्कृष्ट रचना!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-21429815098313831242012-05-22T08:46:04.297-07:002012-05-22T08:46:04.297-07:00शब्द शब्द से भीगी माटी की सोंधी-सोंधी महक उठ रही ह...शब्द शब्द से भीगी माटी की सोंधी-सोंधी महक उठ रही है ...आनंदित करती मन ...<br />बहुत सुंदर सन्देश और प्रकृति वर्णन भी ...!!<br />एक और उत्कृष्ट रचना ....<br />बधाई एवं शुभकामनायें .....!!Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-64301355183321169202012-05-22T08:27:40.731-07:002012-05-22T08:27:40.731-07:00सुंदर शाब्दिक चित्रण ..... जीवन से जुड़ी सी बातेंसुंदर शाब्दिक चित्रण ..... जीवन से जुड़ी सी बातें डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-27611924357782413982012-05-22T07:12:49.641-07:002012-05-22T07:12:49.641-07:00कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखेंगे
...कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव<br /> मेघो से कब सीखेंगे<br />ऊपर उठकर निज स्वार्थ से<br />युग बृक्ष को कब सीचेंगे<br /><br />सचमुच, मेघों से हमें सीख लेनी चाहिए।<br />अच्छी कविता।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-74216237764473413342012-05-22T06:53:35.390-07:002012-05-22T06:53:35.390-07:00हमेशा की तरह वज़नी रचना है....
जाने कितनी बार पढ़न...हमेशा की तरह वज़नी रचना है....<br />जाने कितनी बार पढ़ना होता है भीतर उतारने को.....<br />:-)<br /> शुभकामनाएँ स्वीकारें........<br /><br />अनुANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-73821179572471250682012-05-22T06:23:09.974-07:002012-05-22T06:23:09.974-07:00कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखेंगे...कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव <br /> मेघो से कब सीखेंगे <br />ऊपर उठकर निज स्वार्थ से<br />युग बृक्ष को कब सीचेंगे<br />शत योजन आच्छादित मेघो पर <br />कभी तो ये मन रीझेंगे .<br />bas is baat ki keval ummid hi ki jaa sakti hai warnaa sikhne ko to kab kaa sikh chukaa hota manaav....Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-5920014038519366222012-05-22T05:41:10.300-07:002012-05-22T05:41:10.300-07:00अलि गुंजत है अमलतास पर ,
ढूंढ़ रहे सुमधुर पराग
आल...अलि गुंजत है अमलतास पर ,<br />ढूंढ़ रहे सुमधुर पराग <br />आली निरखत है निज प्रिय को,<br />भरे नयन अतुल अनुराग<br />प्रणयातुर विहग-कीट उल्लासित,<br />अविचल गाते प्रेम राग ...<br /><br />इस प्रेम गीत के मधुर गुंजन को अध्बुध शब्दों में बांधा है आपने ... काव्यमय .. भावमय अभिव्यक्ति ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-59099852978002686542012-05-22T04:47:28.341-07:002012-05-22T04:47:28.341-07:00प्रकृति हमें पूरा जीवन दर्शन देती है. पर हम समझते ...प्रकृति हमें पूरा जीवन दर्शन देती है. पर हम समझते कहाँ हैं.<br />काश कुछ सीख लेते हम इन प्रकृति के संदेशवाहकों से.<br />उत्कृष्ट रचना.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1519412473588202252.post-67286299783721579342012-05-22T03:23:43.372-07:002012-05-22T03:23:43.372-07:00कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखेंगे
...कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव<br /> मेघो से कब सीखेंगे<br />ऊपर उठकर निज स्वार्थ से<br />युग बृक्ष को कब सीचेंगे<br />शत योजन आच्छादित मेघो पर<br />कभी तो ये मन रीझेंगे .<br /><br /><br /><br />इन पंक्तियों का उत्तर तो अब देने का समय नहीं रहा . कभी समय होता था कि प्रकृति से सन्देश लेकर जीवन चला करते थे.<br /> अब तो तेरे आगे रहने से मुझको है परेशानी,<br /> चल हट मुझे आगे होने दे कहे तो न हो हैरानी.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com